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ठाणं (स्थान)
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अंतचारी, मज्झचारी सव्वचारी । अन्तचारी, मध्यचारी, सर्वचारी ।
एवामेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता, एवमेव पञ्च भिक्षाका प्रज्ञप्ताः, तं महा
तद्यथा
अणुसोतचारी, 'पडिसोतचारी,
अंतचारी, मज्भचारी,
सव्वचारी ।
वणीमग-पदं
२००. पंच वणीमगः पण्णत्ता, तं जहा अति हिवणीमगे, किवणवणीमगे, माहणवणीमगे, समणवणीमगे ।
साणवणीमगे,
अनुश्रोतश्चारी, प्रतिश्रोतश्चारी, अन्तचारी, मध्यचारी, सर्वचारी ।
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वनीपक-पदम्
पञ्च वनीपकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— अतिथिवनीपकः, कृपणवनीपकः, माहनवनीपकः, श्ववनीपकः, श्रमणवनीपकः ।
भवति, तद्यथाअल्पा प्रतिलेखना, लाघविकं प्रशस्तं, रूपं वैश्वासिकं, तपोऽनुज्ञातं, विपुलः इन्द्रियनिग्रहः ।
स्थान ५ : सूत्र २००-२०१
३. अन्तचारी,
४. मध्यचारी,
५. सर्वचारी ।
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इसी प्रकार भिक्षुक पांच प्रकार के होते हैं—
१. अनुश्रोतचारी, २ प्रतिश्रोतचारी, ३. अन्तचारी, ४. मध्यचारी,
५. सर्वचारी ।
वनोपक पद
२०० वनीपक- याचक पांच प्रकार के होते हैं १९९
१. अतिथिवनीपक- अतिथिदान प्रशंसा कर भोजन मांगने वाला ।
२. कृपणवनीपम कृपणदान की प्रशंसा
की
अचल-पदं
अचेल -पदम्
अचेल पद
२०१. पंचहि ठाणेहि अचेलए पसत्थे पञ्चभिः स्थान: अचेलकः प्रशस्तो २०१. पांच स्थानों से अचेलक प्रशस्त होता
है*१०
भवति, तं जहा - अप्पा पडिहा, ला विए पसत्थे, रूवे वेसासिए, तवे अणुष्णाते, विउले इंदियणिग्गहे ।
कर भोजन वाला।
३. माहनवनीपक- ब्राह्मणदान की प्रशंसा
कर भोजन मांगने वाला ।
४. श्ववनीपक- कुत्ते के दान की प्रशंसा
कर भोजन मांगने वाला ।
५. श्रमणवनीपक श्रमणदान की प्रशंसा कर भोजन मांगने वाला।
१. उसके प्रतिलेखना अल्प होती है,
२. उसका लाघव प्रशस्त होता है,
३. उसका रूप [ वेप ] वैश्वासिक - विश्वास योग्य होता है,
४. उसका तप अनुज्ञात्- जिनानुमत होता है,
१. उसके विपुल इन्द्रिय - निग्रह होता है।
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