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________________ ठाणं (स्थान) ११. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पंच रयहरणाई धारितए वा परिहरेत्तए वा तं जहाउणिए, उट्टिए, साणए, पच्चापिच्चिए, मुंजापिच्चिए णामं पंचमए । निस्साद्वाण-पदं १६२. धम्मणं चरमाणस्स पंच पिसाटाणा पण्णत्ता, तं जहाछक्काया, गणे, राया गाहावती, सरीरं । णिहि-पदं १३. पंच णिही पण्णत्ता, तं जहा पुतणी, मित्तणिही, सिप्पणिही, धणणिही, धण्णणिही । सोच -पदं १४. पंचविहे सोए पण्णत्ते, तं जहापुढविसोए, आउसोए, तेउसोए, मंतसोए, बंभसोए । छउमत्थ- केवलि-पदं १५. पंच ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति तं जहा Jain Education International ६०१ कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा पञ्च रजोहरणानि तु वा परिधातुं वा, तद्यथा- किं, औष्ट्रिक, सानकं, पच्चापिच्चियं, मुञ्चापिच्चियं नाम पञ्चमकम् । निश्रास्थान-पदम् धर्मं चरतः पञ्च निवास्थानानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा— षटकायाः, गणः, राजा, गृहपतिः, शरीरम् । निधि-पदम् पञ्च निधयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथापुत्रनिधिः, मित्रनिधिः, शिल्पनिधिः, धननिधिः, धान्यनिधिः । शौच-पदम् पञ्चविधं शौचं प्रज्ञप्तम्, तद्यथापृथ्वीशौचं अशौच, तेजः शौचं मन्त्रशौचं ब्रह्मशौचम् । स्थान ५ : सूत्र ९६१-१६५ १३१. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां पांच प्रकार के रजोहरण ग्रहण तथा धारण कर सकती For Private & Personal Use Only हैं १. ऑणिक - ऊन से निष्पन्न, २. औष्ट्रिक ऊंट के केशों से निष्पन्न, ३. सानकसन से निष्पन्न, ४. पच्चापिच्चिय १९ बल्वज नाम की मोटी घास को कूटकर बनाया हुआ, ५. मुंजापिच्चिय "" मूंज को कूटकर बनाया हुआ । निश्रास्थान-पद १९२. धर्म का आचरण करने वाले साधु के पांच निवास्थान आलम्बन स्थान होते हैं११३ १. पट्काय, २. गण - श्रमण संघ, ३. राजा, ४. गृहपति — उपाश्रय देने वाला, ५. शरीर । निधि-पद १९३. निधि पांच प्रकार की होती है २. मित्रनिधि, ४. धननिधि, १. पुत्रनिधि, ३. शिल्पनिधि, ५. धान्यनिधि | शौच-पद १९४. शौच पांच प्रकार का होता है १. पृथ्वी -- मिट्टीशौच, ३. तेजः शौच, ५. ब्रह्मशौच - ब्रह्मचर्य आचरण । २. जलशौच, ४. मन्त्रशीच आदि का छद्मस्थ-केवलि-पदम् छद्मस्थ- केवलि-पद पञ्च स्थानानि छद्मस्थः सर्वभावेन न १९५. पांच स्थानों को छद्मस्थ सर्वभाव से नहीं जानाति न पश्यति, तद्यथा जानता, देखता www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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