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________________ ठाणं (स्थान) ६०० स्थान ५ : सूत्र १८८-१६० १८८.णियंठे पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- निर्ग्रन्थः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १८८. निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के होते हैं ---- पढमसमयणियंठे, प्रथामसमयनिर्ग्रन्थः, १. प्रथमसमयनिग्रन्थ - निर्ग्रन्थ की कालअपढमसमयणियंठे, अप्रथमसमयनिर्ग्रन्थः, स्थिति अन्तर्महुर्त प्रमाण होती है। उस चरिमसमयणियंठे, चरमसमयनिर्ग्रन्थः , काल में प्रथम समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ । अचरिमसमयणियंठे, अचरमसमयनिर्ग्रन्थः, २. अप्रथमसमयनिर्ग्रन्थ---प्रथम समय के अहासुहमणियं णामं पंचमे। यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थो नाम पञ्चमः । अतिरिक्त शेष काल में वर्तमान निर्ग्रन्थ । ३. चरमसमयनिर्ग्रन्थ---अन्तिम समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ। ४. अचरमसमयनिर्ग्रन्थ-अन्तिम समय के अतिरिक्त शेष समय में वर्तमान निर्ग्रन्थ । ५. यथासूक्ष्मनिर्ग्रन्थ-प्रथम या अन्तिम समय की अपेक्षा किए बिना सामान्य रूप से सभी समयों में वर्तमान निर्ग्रन्थ । १८६. सिणाते पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा.- स्नातः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा.... १८६. स्नातक पांच प्रकार के होते हैंअच्छवी, असबले, अकम्मसे, अच्छविः, अशबलः, अकर्माशः, १. अच्छवी—काय योग का निरोध करने संसुद्धणाणदंसणधरे—अरहा जिणे संशुद्धज्ञानदर्शनधर:-अर्हन् जिनः केवली वाला। केवली, अपरिस्साई। अपरिधावी। २. अशबल-निर्विचार साधुत्व का पालन करने वाला। ३. अकर्माश-घात्यकों का पूर्णतः क्षय करने वाला। ४. संशुद्धज्ञानदर्शनधारी---अर्हत, जिन, केवली। ५. अपरिधावी-सम्पूर्ण काय योग का निरोध करने वाला। उपधि-पदं उपधि-पदम् उपधि-पद १६०. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा १६०. निर्ग्रन्थ तथा निर्ग्रन्थियां पांच प्रकार के वा पंच वत्थाई धारित्तए वा पञ्च वस्त्राणि धत्तु वा परिधातुं वा, । वस्त्र ग्रहण कर सकती हैं तथा पहन परिहरेत्तए वा, तं जहा- तद्यथा सकती हैं १. जांगमिक—वस जीवों के अवयवों से जंगिए, भंगिए, साणए, पोतिए, जाङ्गिक, भाङ्गिक, सानक, पोतक, निष्पन्न कम्बल आदि, तिरीडपट्टए णामं पंचमए। तिरीटपट्टकं नाम पञ्चमकम् । २. भागिक-अतसी से निष्पन्न, ३. सानिक-सन से निष्पन्न, ४. पोतक-रूई से निष्पन्न, ५. तिरीटपट्ट-लोध की छाल से निष्पन्न। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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