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________________ ठाणं (स्थान) ५६४ स्थान ५: सूत्र १८५-१८७ १८५. पुलाए पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा- पुलाकः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १८५. पुलाक पांच प्रकार के होते हैंणाणपुलाए, दंसणपुलाए, ज्ञानपुलाकः, दर्शनपुलाकः, चरित्रपुलाकः, १. ज्ञानपुलाक-स्खलित, मिलित आदि ज्ञान के अतिचारों का सेवन करने वाला, चरित्तपुलाए, लिंगपुलाए, लिङ्गपुलाकः यथासूक्ष्मपुलाको नाम २. दर्शनपुलाक-सम्यक्त्व के अतिचारों अहासुहमपुलाए णामं पंचमे। पञ्चमः । का सेवन करने वाला, ३. चरित्रपुलाक-मूलगुण तथा उत्तरगुण-दोनों में ही दोष लगाने वाला, ४. लिंगपुलाक --शास्त्रविहित उपकरणों से अधिक उपकरण रखने वाला या बिना ही कारण अन्य लिंग को धारण करने वाला, ५. यथासूक्ष्मपुलाक--प्रमादवश अकल्पनीय वस्तु को ग्रहण करने का मन में भी चिन्तन करने वाला या उपर्युक्त पांचों अतिचारों में से कुछ-कुछ अतिचारों का सेवन करने वाला। १८६. बउसे पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा- बकुशः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १८६. बकुश पांच प्रकार के होते हैं आभोगबउसे, अणाभोगबउसे, आभोगबकुश:, अनाभोगबकुशः, १. आभोगबकुश-जान-बूझकर शरीर संव डबउसे असंवडबउसे, संवृतबकुश:, असंवृतबकुशः, की विभूषा करने वाला, अहासुहुमबउसे णामं पंचमे। यथासूक्ष्मबकुशो नाम पञ्चमः । २. अनाभोगबकुश-अनजान में शरीर की विभूषा करने वाला, ३. संवृतबकुश-छिप-छिपकर शरीर आदि की विभूषा करने वाला, ४. असंवृतबकुश-प्रकटरूप में शरीर की विभूषा करने वाला, ५. यथासूक्ष्मबकुश-प्रकट या अप्रकट में शरीर आदि की सूक्ष्म विभूषा करने वाला। १८७. कुसीले पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा- कुशीलः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- १८७. कुशील पांच प्रकार के होते हैं १. ज्ञानकुशील-काल, विनय आदि णाणकुसीले, दसणकुसीले, ज्ञानकुशीलः, दर्शनकुशीलः, ज्ञानाचार की प्रतिपालना नहीं करने चरित्तकुसीले, लिंगकुसीले, चरित्रकुशीलः, लिङ्गकुशीलः, आदि अहासुहुमकुसीले णामं पंचमे। २. दर्शनकुशील-निष्कांक्षित यथासूक्ष्मकुशीलो नाम पञ्चमः । दर्शनाचार की प्रतिपालना नहीं करने वाला, वाला, ३. चरित्रकुशील-कौतुक, भूतिकर्म, प्रश्नाप्रश्न, निमित्त, आजीविका, कल्ककुरुका, लक्षण, विधा तथा मन्त्र का प्रयोग करने वाला, ४. लिंगकुशील–वेष से आजीविका करने वाला, ५. यथासूक्ष्मकुशील- अपने को तपस्वी आदि कहने से हर्षित होने वाला। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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