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ठाणं (स्थान)
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स्थान ५ : सूत्र १८०-१८४ १८०. तिरियलोगे णं पंच बायरापण्णत्ता, तिर्यगलोके पञ्च बादरा: प्रज्ञप्ताः, १८०. तिर्यक्लोक में पांच प्रकार के बादर जीव तं जहा.तद्यथा
होते हैंएगिदिया, 'बेइंदिया, तेइंदिया, एकेन्द्रियाः, द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रिया:, १. एकेन्द्रिय, २.द्वीन्द्रिय, ३. त्रीन्द्रिय, चरिदिया, पंचिदिया। चतुरिन्द्रियाः, पञ्चेन्द्रियाः ।
४. चतुरिन्द्रिय, ५. पंचेन्द्रिय। १८५. पंचविहा बायरतेउकाइया पण्णत्ता, पञ्चविधाः बादरतेजस्कायिकाः प्रज्ञप्ता:, १८१. बादर तेजस्कायिक जीव पांच प्रकार के तं जहातद्यथा
होते हैं-- इंगाले, जाले, मुम्मुरे, अच्ची, अङ्गारः, ज्वाला, मुर्मरः, अचि:, १. अंगार, २. ज्वाला-अग्निशिखा, अलाते। अलातम्।
३. मुर्मर -चिनगारी, ४. अचि ----लपट,
५. अलात-जलती हुई लकड़ी। १८२. पंचविधा बादरवाउकाइया पञ्चविधा बादरवायुकायिकाः प्रज्ञप्ताः, १८२. बादर वायुकायिक जीव पांच प्रकार के पण्णता, तं जहातद्यथा
होते हैंपाईणवाते, पडीणवाते, दाहिणवाते, प्राचीनवातः, प्रतिचीनवातः, दक्षिणवात: १. पूर्व वात, २. पश्चिम वात, उदोणवाते, विदिसवाते। उदीचीनवातः, विदिगवातः ।
३. दक्षिण वात, ४. उत्तर वात, ५. विदिक वात।
अचित्त-वाउकाय-पदं अचित्त-वायुकाय-पदम्
अचित्त-वायुकाय-पद १८३. पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पञ्चविधाः अचित्ताः वायुकायिका: १८३. अचित्त वायुकाय पांच प्रकार का होता पण्णत्ता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा
१. आक्रान्त-पैरों को पीट-पीट कर अक्कते, धंते, पीलिए, सरीराणुगते, आक्रान्तः, ध्मातः, पीडितः, शरीरानुगतः,
चलने से उत्पन्न वायु, समुच्छिमे। सम्मच्छिमः ।
२. ध्मात-धौंकनी आदि से उत्पन्न वायु, ३. पीडित----गीले कपड़ों के निचोड़ने आदि से उत्पन्न वायु, ३. शरीरानुगत --डकार, उच्छ्वास आदि, ५. संमूच्छिम---पंखा झलने आदि से
उत्पन्न वायु। णियंठ-पदं निर्ग्रन्थ-पदम्
निर्ग्रन्थ-पद १८४. पंच णियंठा पण्णत्ता, तं जहा- पञ्च निर्ग्रन्थाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १८४. निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के होते हैं --- पुलाए, बउसे, कुसीले, णियंठे, पुलाकः, बकुशः, कुशीलः, निर्ग्रन्थः, ।
१. पुलाक-नि:सार धान्यकणों के समान
जिसका चरित्र निःसार है, सिणाते। स्नातः।
२. बकुश-जिसके चरित्र में स्थान-स्थान पर धब्वे लगे हुए हैं, ३. कुशील-जिसका चरित्र कुछ-कुछ मलिन हो गया हो, ४. निर्ग्रन्थ-जिसका मोहनीय कर्म छिन्न हो गया हो, ५. स्नातक--जिसके चार घात्यकर्म छिन्न हो गए हों।
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