________________
ठाणं (स्थान)
taraणं अम्मत्किाए एवं द्रव्यतः अधर्मास्तिकायः एकं द्रव्यम् ।
दव्वं ।
खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते ।
कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति भुवि च भवति य भविस्सति य धुवे पिइए सासते अक्खए अन् अवट्ठिते णिच्चे | भावओ raणे अगंधे अरसे भावतः अवर्ण: अगन्धः अरसः अस्पर्शः ।
क्षेत्रतः लोकप्रमाणमात्रः । कालतः न कदापि न आसोत्, न कदापि न भवति, न कदापि न भविष्यति इति — अभूच्च भवति च भविष्यति च, ध्रुवः निचितः शाश्वतः अक्षयः अव्ययः अवस्थितः नित्यः ।
अफासे । गुणओ ठाणगुणे ।
कालओण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुवि च भवतिय भविस्सति य, धुवे पिइए सासते अक्खए अव अद्विते णिच्चे | भावओ अवणे अगंधे अरसे अफासे ।
१७२. आगासत्थिकाए अवणे "अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए rafe लोग लोग दव्वे । से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा -
दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, द्रव्यतः, , क्षेत्रतः, :, कालतः, भावतः, भावओ, गुणओ । गुणतः । दव्वओ णं आगासत्थिकाए एवं द्रव्यतः आकाशास्तिकायः एकं द्रव्यम् । दव्वं ।
खेत्तअ लोगालोगपमाणमेत्ते ।
क्षेत्रतः लोकालोकप्रमाणमात्रः ।
अवगाहा | १७३. जीवत्थिकाए णं अवणे "अगंधे अरसे अफासे अवी जीवे सासए cafe लोगod |
५६५
Jain Education International
गुणतः स्थानगुणः ।
आकाशास्तिकायः अवर्णः अगन्धः अरसः अस्पर्शः अरूपी अजीवः शाश्वतः अवस्थितः लोकालोकद्रव्यम् । स समासतः पञ्चविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा—
कालतः न कदापि न आसीत्, न कदापि न भवति, न कदापि न भविष्यति इति अभूच्च भवति च भविष्यति च, ध्रुवः निचित: शाश्वतः अक्षयः अव्यय: अवस्थितः नित्यः । भावतः अवर्णः अगन्ध: अरसः अस्पर्शः ।
गुणतः अवगाह्नागुणः । जीवास्तिकाय: अवर्णः अगन्धः अरसः अस्पर्शः अरूपी जीवः शाश्वतः अवस्थितः लोकद्रव्यम् ।
For Private & Personal Use Only
स्थान ५ : सूत्र १७२-१७३
द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य है ।
क्षेत्र की अपेक्षा- लोकप्रमाण है । काल की अपेक्षा कभी नहीं था ऐसा नहीं है, कभी नहीं है ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा ऐसा नहीं है। वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अतः वह ध्रुव निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है ।
भाव की अपेक्षा अवर्ण, अगंध, अरस और अस्पर्श है ।
गुण की अपेक्षा - स्थान गुण — स्थिति में उदासीन सहायक है ।
१७२. आकाशास्तिकाय अवर्ण, अगंध, जरस,
अस्पर्श, अरूप, अजीव, शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है । संक्षेप में वह पांच प्रकार का है
१. द्रव्य की अपेक्षा, २. क्षेत्र की अपेक्षा,
३. काल की अपेक्षा, ४. भाव की अपेक्षा, ५. गुण की अपेक्षा ।
द्रव्य की अपेक्षा एक द्रव्य है ।
क्षेत्र की अपेक्षा लोक तथा अलोकप्रमाण है।
काल की अपेक्षा कभी नहीं था ऐसा नहीं है, कभी नहीं है ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा ऐसा नहीं है। वह अतीत में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा । अतः वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अदाय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है । भाव की अपेक्षा - अवर्ण, अगंध, अरस और और अस्पर्श है । गुण की अपेक्षा -- अवगाहन गुण बाला है। १७३. जीवास्तिकाय अवर्ण, अगंध, अरस,
अस्पर्श, अरूप, अजीव, शाश्वत, अबस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है
www.jainelibrary.org