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________________ ठाणं (स्थान) ५७६ स्थान ५:सूत्र १०८ ३. अत्थेगइया णिग्गंथा य णिग्ग- ३. सन्त्येके निर्ग्रन्थाश्च निर्ग्रन्थ्यश्च । ३. कदाचित् कुछ निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां थीओ य णागकुमारावासंसि वा नागकुमारावासे वा सुपर्णकुमारावासे । नागकुमार आदि के आवास में रहें। वहां सुवष्णकुमारावासंसि वा वासं वा वासं उपागताः, तत्रैकतः स्थानं वा अतिविजनता होने के कारण निर्ग्रन्थियों उवागता, तत्थेगओ 'ठाणं वा शय्यां वा निषिधीकां वा कुर्वन्तो नाति- की सुरक्षा के लिए एक स्थान पर कायोसेज्ज वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° कामन्ति। त्सर्ग, शयन तथा स्वाध्याय करते हुए णातिक्कमंति। आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते, ४. आमोसगा दीसंति, ते इच्छंति ४. आमोषका दृश्यन्ते, ते इच्छन्ति ४. कहीं चोर बहुत हों और वे निर्ग्रन्थियों णिग्गंथीओ चीवरपडियाए पडि- निर्ग्रन्थीः चीवरप्रतिज्ञया परिग्रहीतुम्, के वस्त्रों को चुराना चाहते हों, वहां गाहित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा तत्रैकतः स्थानं वा शय्यां वा निषीधिकां निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां एक स्थान पर 'सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा° वा कुर्वन्तो नातिकामन्ति । कायोत्सर्ग, शयन तथा स्वाध्याय करने णातिक्कमंति। हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते। ५. जुवाणा दोसंति, ते इच्छंति ५. युवानो दृश्यन्ते, ते इच्छन्ति निर्ग्रन्थी: । ५. कहीं युवक बहुत हों और वे निर्ग्रन्थियों णिग्गंथीओ मेहुणपडियाए पडिगा- मैथुनप्रतिज्ञया प्रतिग्रहीतुम्, तत्रैकत: । के ब्रह्मचर्य को खण्डित करना चाहते हों, हित्तए, तत्थेगओ ठाणं वा 'सेज्जं स्थानं वा शय्यां वा निषीधिकां वा वहां निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियां एक स्थान वा णिसीहियं वा चेतेमाणा कुर्वन्तो नातिकामन्ति । पर कायोत्सर्ग, शयन तथा स्वाध्याय करते णातिक्कमंति। हुए आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते। इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि •णिग्गंथा इत्येतैः पञ्चभिः स्थानः निर्ग्रन्थाश्च इन पांच स्थानों से निर्ग्रन्थ और निग्रंथियां णिग्गंथीओ य एगतओ ठाण वा निर्ग्रन्थ्यश्च एकतः स्थानं वा शय्यां वा एक स्थान पर कायोत्सर्ग, शयन तथा सेज्जं वा णिसीहियं वा चेतेमाणा' निषीधिकां वा कुर्वन्तो नातिकामन्ति । स्वाध्याय करते हुए आज्ञा का अतिक्रमण णातिक्कमति। नहीं करते। १०८. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे पञ्चभि: स्थानः श्रमणः निर्ग्रन्थः १०८. पांच स्थानों से अचेल निर्ग्रन्थ सचेल अचेलए सचेलियाहि णिग्गंथीहि अचेलक: सचेलकाभिः निर्ग्रन्थीभिः साध निर्ग्रन्थियों के साथ रहते हुए आज्ञा का सद्धि संवसमाणे णाइक्कमति, तं संवसन् नातिकामति, तद्यथा--- अतिक्रमण नहीं करते--- जहा१. खित्तचित्ते समणे णिग्गंथे १. क्षिप्तचित्तः श्रमणः निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थेषु १. शोक आदि से क्षिप्तचित निर्यन्थ, णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहि अचेलए अविद्यमानेषु अचेलक: सचेलकाभिः अन्य निर्ग्रन्थों के न होने पर, स्वयं अचेल सचेलियाहि णिग्गंथीहि सद्धि निर्ग्रन्थीभिः साध संबसन् नातिकामति।। होते हए, सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता संवसमाणे णातिक्कमति। हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता, २. 'दित्तचित्ते समणे णिग्गंथे २. दृप्तचित्तःश्रमणः निर्ग्रन्थः निर्ग्रन्थेषु २. हर्ष आदि से दृप्तचित्त निर्ग्रन्थ, अन्य णिग्गंथेहिमविज्जमाणेहि अचेलए अविद्यमानेषु अचेलक: सचेलकाभि: निर्ग्रन्थों के न होने पर, स्वयं अचेल होते सचेलियाहि णिग्गंथीहिं सद्धि निर्ग्रन्थीभिः सार्ध संवसन् नातिकामति । हए, सचेल निर्ग्रन्थियों के साथ रहता हुआ संवसमाणे णातिक्कमति । आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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