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________________ ठाणं (स्थान) २. पाडिहारियं वा पीढ - फलगसेज्जा - संथारगं राउर मणुपवसेज्जा । पच्च पिणमाणे ३. हयस्स वा गयस्स वा दुट्ठस्स आगच्छमाणस्स भीते रायंतेउरgat | ४. परो व णं सहसा वा बलसा वा बाहाए गहाय रायंतेउरमणुपवेसेज्जा । ५. बहिता व णं आरामगयं वा उज्जाणगयं वा रायंते उरजणो सव्वतो समता संपरिक्खिवित्ता णं सणिवेसिज्जाइच्चे हि पंचहि ठाणेहि सम friथे 'रायंते उरमणुपविसमाणे णातिक्कमइ । गभधरण-पदं १०३. पंचहि ठाणेह इत्थी पुरिसेण सद्धि असंवसमाणीवि गन्भं धरेज्जा, तं जहा - ९. इत्थी दुब्बियडा दुण्णिसण्णा सुक्कपोगले अधिद्विज्जा । २. सुक्कपोग्गलसंसिद्धे व से वत्थे अंतोजोणीए अणुपवेसेज्जा । ३. सई वा से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा | ४. परो व से सुक्कपोग्गले अणुपवेसेज्जा | Jain Education International ५७६ २. प्रातिहारिकं वा पीठ - फलक-शय्यासंस्तारकं प्रत्यर्पयन् राजान्तः पुरमनुप्रविशेत् । ३. हयस्य वा गजस्य वा दुष्टस्य आगच्छतः भीतः राजान्तःपुरं अनुप्रविशेत् । ४. परो वा सहसा वा बलेन वा बाहून् गृहीत्वा राजान्तः पुरं अनुप्रवेशयेत् । ५. बहिस्तात् वा आरामगतं वा उद्यानगतंवा राजान्तःपुरजनो सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्य सन्निविशेत्इत्येतैः पञ्चभिः स्थानैः श्रमणः निर्ग्रन्थः राजान्तःपुरं अनुप्रविशन् नातिक्रामति । गर्भधरण-पदम् पञ्चभिः स्थानैः स्त्रीः पुरुषेण सार्धं असंवसन्त्यपि गर्भं धरेत्, तद्यथा १. स्त्री दुर्विवृता दुर्निषण्णा शुक्रपुद्गलान् अधितिष्ठेत् । २. शुक्रपुद्गलसंसृष्टं वा तस्याः वस्त्रं अन्तः योन्यां अनुप्रविशेत् । ३. स्वयं वा सा शुक्रपुद्गलान् अनुप्रवेशयेत् । ४. परो वा तस्याः शुक्रपुद्गलान् अनुप्रवेशयेत् । For Private & Personal Use Only स्थान ५ : सूत्र १०३ २. प्रातिहारिक" पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक को वापस देने के लिए राजा के अन्तःपुर में अनुप्रविष्ट हो सकता है, ३. दुष्ट घोड़े या हाथी आदि के सामने आ जाने पर रक्षा के लिए राजा के अन्तःपुर में अनुप्रविष्ट हो सकता है, ४. कोई अन्य व्यक्ति अचानक बलपूर्वक पकड़ कर ले जाए तो राजा के अन्त:पुर में अनुप्रविष्ट हो सकता है, ५. कोई साधु नगर के बाहर आराम" या उद्यान" में ठहरा हुआ हो और वहां क्रीड़ा करने के लिए राजा का अन्तःपुर आ जाए, राजपुरुष उस आराम को घेर लें - निर्गम व प्रवेश बन्द कर दें, उस स्थिति में वह वहीं रह सकता है। इन पांच स्थानों से श्रमण-निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर में अनुप्रविष्ट होता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता । गर्भधरण-पद १०३. पांच कारणों से स्त्री पुरुष का सहवास न करती हुई गर्भ को धारण कर सकती है"-- १. अनावृत तथा दुर्निषण्ण - पुरुष वीर्य से संसृष्ट स्थान को गुह्य 'प्रदेश से आक्रांत कर बैठी हुई स्त्री के योनि देश में शुक्र पुद्गलों का आकर्षण होने पर, २. शुक्र- पुद्गलों से संसृष्ट वस्त्र के योनि - देश में अनुप्रविष्ट हो जाने पर, ३. पुत्रार्थिनी होकर स्वयं अपने ही हाथों से शुत्र- पुद्गलों को योनि- देश में प्रविष्ट कर देने पर, अनु ४. दूसरों के द्वारा शुक्र- पुद् गलों के योनिदेश में अनुप्रविष्ट किए जाने पर, www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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