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________________ ठाणं (स्थान) वासावास-पदं १००. वासावासं पज्जोसविताणं णो कम्पs णिग्गंक्षण वा णिग्गंथीण वा गामाणुगामं दूइज्जित्तए । पंचहि ठाणे कप, तं जहा १. णाणट्टयाए, २. दंसणयाए, ३. चरितट्टयाए, ४. आयरिय उवज्झाया वा से वीसुंभेज्जा | ५. आयरिय उवज्झायाण बहिता आवच्चकरणयाए । जहा — हत्थकम् करेमाणे, मेहुणं पडिसेवेमाणे, राती भोयणं भुंजेमाणं, सागारियपिडं भुजेमाणे र्याप भुंजे माणे । वा रायंतेउर-पवेस--पदं १०२. पंचहि ठाणेहि समणे णिग्गंथे रायं उरमपविसमाणे णाइक्कमति, Jain Education International ५७५ अणुग्घातिय-पदं अनुद्घात्य-पदम् अनुद्घात्य-पद १०१. पंच अणुग्धातिया पण्णत्ता, तं पञ्च अनुद्घात्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - १०१. पांच अनुद्घातिक [गुरु प्रायश्चित्त के योग्य होते हैं ] १. हस्तकर्म करने वाला, २. मैथन की प्रतिसेवना करने वाला, ३. रात्रि भोजन करने वाला, ४. सागारिकापिंड [ शय्यातरपिंड ] का भोजन करने वाला, ५. राजपिंड का भोजन करने वाला । तं जहा - १. नगरे सिया सव्वतो समंता गुत्तवारे, बहवे समणमाहणा संचारति भत्ता वा पाणाए वा णिक्खमित्त वा पविसित्तए वा, तेसि विष्णवणट्टयाए रायंतेउरमणुपविसेज्जा । वर्षावास-पदम् वर्षावासं पर्युषितानां नो कल्पते निर्ग्रन्थानां वा निर्ग्रन्थीनां वा ग्रामानुग्रामं द्रवितुम् । पञ्चभिः स्थानः कल्पते, तद्यथा--- १. ज्ञानार्थाय २. दर्शनार्थाय ३. चरित्रार्थाय ४. आचार्योपाध्यायौ वा तस्य विष्वग्भवेतां, ५. आचार्योपाध्याययोः वा बहिस्तात् वैयावृत्त्यकरणाय । हस्तकर्म कुर्वन्, मैथुनं प्रतिमाणः, रात्रिभोजनं भुञ्जानः, सागारिकपिण्डं भुञ्जानः, राजपिण्डं भुञ्जानः । राजान्तःपुर-प्रवेश-पदम् पञ्चभिः स्थानैः श्रमणः निर्ग्रथः राजान्तःपुरं अनुप्रविशन् नातिक्रामति, तद्यथा--- १. नगरं स्यात् सर्वतः समन्तात् गुप्तं गुप्तद्वारं, बहवः श्रमणमाहणाः नो शक्नुवन्ति भक्ताय वा पानाय वा निष्क्रमितुं वा प्रवेष्टुं वा, तेषां विज्ञापनार्थाय राजान्तःपुरं अनुप्रविशेत् । स्थान ५ : सूत्र १०० - १०२ For Private & Personal Use Only वर्षावास - पद १००. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को वर्षावास में पर्युषणा कल्पपूर्वक निवास कर ग्रामानुग्राम विहार नहीं करना चाहिए। पांच कारणों से वह किया जा सकता है? १. ज्ञान के लिए, २. दर्शन के लिए, ३. चरित्र के लिए, ४. आचार्य या उपा ध्याय की मृत्यु के अवसर पर, ५. वर्षाक्षेत्र से बाहर रहे हुए आचार्य या उपाध्याय का वैयावृत्त्य करने के लिए । राजान्तःपुरप्रवेश पद १०२. पांच स्थानों से श्रमण-निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर में अनुप्रविष्ट होता हुआ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता --- १. यदि नगर चारों ओर परकोटे से घिरा हुआ हो तथा उसके द्वार बन्द कर दिए गये हों, बहुत सारे श्रमण और माहन भोजन-पानी के लिए नगर से बाहर निष्कमण और प्रवेश न कर सकें, उस स्थिति में उनके प्रयोजन का विज्ञापन करने के लिए वह राजा के अन्तःपुर में अनुप्रविष्ट हो सकता है, www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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