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ठाणं (स्थान)
स्थान ५ : सूत्र ६२-६७ १२. अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, अरः अर्हन् पञ्चरैवतिक: अभवत्, ६२. अर तीर्थकर के पंच कल्याण रेवती नक्षत्र तं जहा.तद्यथा
में हुएरेवतिहिं चुते चइत्ता गभं रेवत्यां च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। रेवती में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में वक्कते।
अवक्रान्त हुए। ६३. मुणिसुव्वएणं अरहा पंचसवणे हुत्था, मुनिसुव्रतः अर्हन् पञ्चश्रवणः अभवत्, ६३. मुनिसुव्रत तीर्थंकर के पंच कल्याण श्रवण तं जहातद्यथा
नक्षत्र में हुएसवणेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्कते। श्रवणे च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। श्रवण में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में
अवक्रान्त हुए। १४. णमी णं अरहा पंचआसिणीए नमिः अर्हन पञ्चाश्विनीकः अभवत्, ६४. नमि तीर्थंकर के पंच कल्याण अश्विनी हुत्था, तं जहातद्यथा
नक्षत्र में हुएआसिणीहिं चुते चइत्ता गम्भं अश्विन्यां च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। अश्विनी में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में वक्कते।
अवक्रान्त हुए। ६५. णेमी णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, नेमिः अर्हन् पञ्चचित्रः अभवत्, १५. नेमि तीर्थकर के पंच कल्याण चित्रा तं जहातद्यथा
नक्षत्र में हुएचित्ताहिं चुते चइत्ता गम्भ चित्रायां च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। चित्रा में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में वक्कते।
अवक्रान्त हुए। ६६. पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, पार्श्व: अर्हन् पञ्चविशाखः अभवत, ६६. पार्श्व तीर्थंकर के पंच कल्याण विशाखा तं जहातद्यथा
नक्षत्र में हुएविसाहाहि चुते चइत्ता गर्भ विशाखायां च्युतः च्युत्वा गर्भ अव- विशाखा में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में वक्कते। कान्तः ।
अवक्रान्त हुए। ६७. समणे भगवं महावीरे पंचहत्थुत्तरे
श्रमणः भगवान् महावीर: पञ्च- ६७. श्रमण भगवान् महावीर के पंच कल्याण होत्था, तं जहाहस्तोत्तरः अभवत्, तद्यथा
हस्तोत्तर [उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में १. हत्थुत्तराहि चुते चइत्ता गभं १. हस्तोत्तरायां च्युतः च्युत्वा गर्भ । वक्कते। अवक्रान्तः।
१. हस्तोत्तर नक्षत्र में च्युत हुए, च्युत २. हत्थुतराहि गब्भाओ गभं २. हस्तोत्तरायां गर्भात् गर्भ संहृतः। होकर गर्भ में अवक्रान्त हुए। साहरिते।
२. हस्तोत्तर नक्षत्र में देवानंदा के गर्भ से ३. हत्थुत्तराहि जाते। ३. हस्तोत्तरायां जातः।
त्रिशला के गर्भ में संहृत हुए। ४. हत्थत्तराहि मुंडे भवित्ता ४. हस्तोत्तरायां मुण्डो भूत्वा अगारात् ३. हस्तोत्तर नक्षत्र में जन्मे। •अगाराओ अणगारित पव्वइए। अनगारितां प्रव्रजितः।
४. हस्तोतर नक्षत्र में मुण्डित होकर अगार५. हत्युत्तराहि अणंते अणुत्तरे ५. हस्तोतरायां अनन्तं अनुत्तरं निर्व्या- धर्म से अनगार-धर्म में प्रव्रजित हुए, "णिव्याधाए णिरावरणे कसिणे घातं निरावरणं कृत्स्नं प्रतिपूर्ण केवल- ५. हस्तोत्तर नक्षत्र में अनन्त, अनुत्तर, पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे वरज्ञानदर्शनं समुत्पन्नम् ।
निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण समुप्पण्णे।
केवलज्ञानवरदर्शन को संप्राप्त हुए।
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