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________________ ठाणं (स्थान) ५७२ स्थान ५ : सूत्र ८५-६१ ४. चित्ताहि अणते अणुत्तरे ४. चित्रायां अनन्तं अनुत्तरं निर्व्याघातं ४.चित्रा नक्षत्र में अनन्त, अनुत्तर, णिवाघाए णिरावरणे कसिणे निरावरणं कृत्स्नं प्रतिपूर्ण केवलवर- नियाघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण पडिपुण्णे केवलदरणाणदंसणे ज्ञानदर्शनं समुत्पन्न । केवलज्ञानवरदर्शन को संप्राप्त हुए, समुप्पण्णे। ५. चित्ताहिं परिणिव्युत्ते। ५. चित्रायां परिनिर्वृतः । ५. चित्रा नक्षत्र में परिनिवृत हुए। ८५. पुप्फरते णं अरहा पंचमूले हुत्था, पुष्पदन्त: अर्हन् पञ्चमूलः अभवत्, ८५. पुष्पदन्त तीर्थकर के पंच कल्याण मूल तं जहा.तद्यथा नक्षत्र में हुएमूलेणं चुते चइत्ता गन्मं वक्कते। मूले च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। मूल में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में अवक्रान्त हुए। ८६. सीयले णं अरहा पंचपदासाढे शीतल: अर्हन् पञ्चपूर्वाषाढः अभवत्, ८६. शीतल तीर्थंकर के पंच कल्याण पूर्वाषाढा हुत्था, तं जहा तद्यथा नक्षत्र में हुएपुव्वासाढाहिं चुते चइत्ता गब्भं पूर्वाषाढायां च्युतः च्युत्वा गर्भ अव- पूर्वाषाढा में चुत हुए, च्युत होकर गर्भ वक्कते। क्रान्तः। में अवक्रान्त हुए। ८७. विमले णं अरहा पंचउत्तराभद्दवए विमलः अर्हन् पञ्चोत्तरभद्रपदः अभवत्, ८७. विमल तीर्थंकर के पंच कल्याण उत्तरभाद्रहुत्था , तं तद्यथा पद नक्षत्र में हुएउत्तराभवयाहिं चुते चइत्ता गम्भं उत्तरभद्रपदायां च्युतः च्युत्वा गर्भ उत्तरभाद्रपद में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ वक्कते। अवक्रान्तः । में अवक्रान्त हुए। ८८. अणंते णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, अनन्तः अर्हन् पञ्चरैवतिकः अभवत्, ८८. अनन्त तीर्थकर के पंच कल्याण रेवती तं जहातद्यथा नक्षत्र में हुएरेवतिहि चुते चइता गभंवक्कते। रेवत्यां च्युतःच्युत्वाः गर्भ अवक्रान्तः। रेवती में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में अवक्रान्त हुए। ६. धम्मे गं अरहा पंचयूसे हुत्था, तं धर्मः अर्हन् पञ्चपुष्यः अभवत्, ८९. धर्म तीर्थकर के पंच कल्याण पुष्य नक्षत्र जहातद्यथा में हुएपूसेणं चुते चइत्ता गम्भं वक्फते। पुष्ये च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः। पुष्य में च्युत हुए, धुत होकर गर्भ में अवक्रान्त हुए। १०. संतीणं अरहा पंचभरणीए हुत्था, शान्तिः अर्हन् पञ्चभरणीकः अभवत्, १०. शान्ति तीर्थकर के पंच कल्याण भरणी तं जहातद्यथा नक्षत्र में हुएभरणीहिं चुते चइत्ता गम्भं भरण्यां च्युतः च्युत्वा गर्भ अवक्रान्तः । भरणी में चुत हुए, धुत होकर गर्भ में वक्कते। अवक्रान्त हाए। ६१. कुंथू णं अरहा पंचकतिए हुत्था, कुन्थुः अर्हन् पञ्चकृत्तिकः अभवत्, ६१. कुंथु तीर्थकर के पंच कल्याण कृत्तिका तं जहातद्यथा नक्षत्र में हुएकत्तियाहिं चुते चइत्ता गम्भं कृत्तिकायां च्युतः क्युत्वा गर्भ अव- कृत्तिका में च्युत हुए, च्युत होकर गर्भ में वक्कते। क्रान्तः। अवक्रान्त हुए। ST Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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