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________________ ठाणं (स्थान) मच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति वा अवहरति वा । ३. जवखाइ खलु अयं पुरिसे । ते मे एस पुरिसे अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिन्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं aria उद्दवे व वत्थं वा पडवा कंबलं वा पायपुंछणमच्छिदति वा विच्छिदति वा भिदति अवहरति । ४. ममं च णं तब्भववेय णिज्जे कम्मे उदिष्णे भवति । तेण मे एस पुरिसे 'अक्कोसति वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा णिन्भंछेति वा बंधेति वा संभति वा छविच्छेदं करेति वा पमारं वा ति उद्दवेइ वा, वत्थं ना पडिग्गहं वा कंबलं वा पाय पुंछणर्माच्छदति वा विच्छिदति वादिति वा अवहरति वा । ५. ममं च णं सम्मं सहमाणं खममाणं तितिवखमाणं अहिया सेमाणं पासेत्ता बहवे अण्णे छउमत्था समणा णिग्गंथा उदिष्णे - उदिष्णे परीस होवस एवं सम्मं स हिस्संति "ख मिस्संति तितिक्खस्संति अहिया सिस्संति । इच्चे पंचहि ठाणेहिं केवली उदिष्णे परीसहोवसग्गे सम्मं सहेज्जा' खमेज्जा तितिक्खेज्जा अयि / सेज्जा । Jain Education International ५६६ आच्छिनत्ति वा विच्छिनत्ति वा भिनत्ति वा अपहरति वा । वा ३. यक्षाविष्टः खलु अयं पुरुषः । तेन मां एष पुरुषः आक्रोशति वा अपहसति वा निच्छोटयति वा निर्भर्त्सयति बध्नाति वा रुणद्धि वा छविच्छेदं करोति वा प्रमारं वा नयति, उपद्रवति वा वस्त्रं वा प्रतिग्रहं वा कम्बलं वा पादप्रोञ्छनं आच्छिनत्ति वा विच्छिनत्ति वा भिनत्ति वा अपहरति वा । ४. मम च तद्भववेदनीयं कर्म उदीर्ण भवति । तेन मां एष पुरुषः आक्रोशति वा अपहसति वा निरछोटयति वा निर्भर्त्सयति वा बध्नाति वा रुणद्धि वा छविच्छेदं करोति वा प्रमारं वा नयति उपद्रवति वा, वस्त्रं वा प्रतिग्रहं वा कम्बलं वा पादप्रोञ्छनं आच्छिनत्ति वा विच्छिनत्ति वा भिनत्ति वा अपहरति वा । ५. मां च सम्यक् सहमानं क्षममाणं तितिक्षमाणं अध्यासमानं दृष्ट्वा बहवः अन्ये छद्मस्था: श्रमणाः निर्ग्रन्थाः उदीर्णान् उदीर्णान् परीषहोपसर्गान् एवं सम्यक् सहिष्यन्ते क्षमिष्यन्ते तितिक्षिष्यन्ते अध्यासिष्यन्ते । इत्येतैः पञ्चभिः स्थानैः केवली उदीर्णान् परीषहोपसर्गान् सम्यक् सहेत क्षमेत तितिक्षेत अध्यासीत । For Private & Personal Use Only स्थान ५: सूत्र ७४ पात्र, कंबल, पादप्रोछन आदि का आच्छेदन करता है, विच्छेदन करता है, भेदन करता है या अपहरण करता है। ३. यह पुरुष यक्षाविष्ट है इसलिए यह मुझ पर आक्रोश करता है. मुझे गाली देता है, मेरा उपहास करता है, मुझे बाहर निकालने की धमकियां देता है, मेरी निर्भर्त्सना करता है, मुझे बांधता है, रोकता है, अंगविच्छेद करता है, मूच्छित करता है, उपद्रुत करता है, वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोछन आदि का आच्छेदन करना है, विच्छेदन करता है, भेदन करना है या अपहरण करता है, ४. मेरे इस भव में बेदनीय कर्म उदित हो गए हैं इसलिए यह पुरुष मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है, मेरा उपहास करता है, मुझे बाहर निकालने की धनकियां देता है, मेरी निर्भर्त्सना करता है, मुझे बांधता है, रोकता है, अंगविच्छेद करता है, मूच्छित करता है, उपद्रूत करता है, वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोंछन आदि का आच्छेदन करता है, विच्छेदन करता है, भेदन करता है या अपहरण करता है, ५. मुझे अविचल भाव से परीषहों को सहता हुआ, क्षान्ति रखता हुआ, तितिक्षा रखता हुआ, अप्रभावित रहता हुआ देखकर बहुत सारे छद्मस्थ श्रमण-निर्ग्रन्थ परी षहों और उपसर्गों के उदित होने पर उन्हें अविचल भाव से सहन करेंगे, क्षान्ति रखेंगे, तितिक्षा रखेंगे और उनसे अप्रभावित रहेंगे। इन पांच स्थानों से केवली उदित परिषहों तथा उपसर्गों को अविचलभाव से सहता है, क्षान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है और उनसे अप्रभावित रहता है। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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