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ठाणं (स्थान)
स्थान ५ : सूत्र ७४ ४. ममं व णं सम्ममसहमाणस्स ४. मम च सम्यग् असहमानस्य अक्षम
४. यदि मैं इन्हें अविचल भाव से सहन अखममाणस्स अतितिक्खमाणस्स मानस्य अतितिक्षमाणस्य अनध्यासमा- नहीं करूँगा, क्षान्ति नहीं रखुंगा, तितिक्षा अणधियासमाणस्स कि मण्णे नस्य कि मन्ये क्रियते? एकान्तशः मम नहीं रखूगा और उनसे प्रभावित रहूंगा कज्जति ? एगंतसो मे पावे कम्मे पापं कर्म क्रियते ।
तो मुझे क्या होगा? मेरे एकान्त पापकज्जति।
कर्म का संचय होगा। ५. ममं च णं सम्म सहमाणस्स ५. मम च सम्यक् सहमानस्य क्षममानस्य ५. यदि में अविचल भाव से सहन करूँगा 'खममाणस्स तितिक्खमाणस्स तितिक्षमाणस्य अध्यासमानस्य कि मन्ये क्षान्ति रखूगा, तितिक्षा रखूगा और उन अहियासेमाणस्स कि मण्णे क्रियते ? एकान्तश: मम निर्जरा से अप्रभावित रहूंगा तो मुझे क्या होगा? कज्जति ? एगंतसो मे णिज्जरा क्रियते।
मेरे एकान्त निर्जरा होगी। कज्जति । इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि छउमत्थे इत्येतैः पञ्चभिः स्थानः छद्मस्थः इन पाँच स्थानों से छद्मस्थ उदित उदिण्णे परिसहोवसग्गे सम्म उदीर्णान् परीषहोपसर्गान् सम्यक् सहेत परीषहों तथा उपसर्गों को अविचल भाव सहेज्जा खमेज्जा तितिक्खेज्जा क्षमेत तितिक्षेत अध्यासीत ।
से सहता है, क्षान्ति रखता है, तितिक्षा अहियासेज्जा।
रखता है और उनसे अप्रभावित रहता है। ७४. पंचर्चाह ठार्गोह केवली उदिण्णे पञ्चभिः स्थानः केवली उदीर्णान् ७४. पाँच स्थानों से केवली उदित परीषहों परिसहोवसग्गे सम्म सहेज्जा परीषहोपसर्गान् सम्यक् सहेत क्षमेत
और उपसर्गों को अविचल भाव से सहता 'खमेज्जा तितिक्ज्ज्जा अहिया- तितिक्षेत अध्यासीत, तद्यथा
है ---क्षान्ति रखता है, तितिक्षा रखता है सेज्जा, तं जहा
और उनसे अप्रभावित रहता है। १. खित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे। १. क्षिप्तचित्तः खलु अयं पुरुषः । तेन । १. यह पुरुष क्षिप्तचित्त बाला-शोक तेण मे एस पुरिसे अक्कोसति वा मां एप पुरुषः आक्रोशति वा अपहसति
आदि से बेभान है, इसलिए यह मुझ पर
आक्रोश करता है, मुझे गाली देता है, 'अव हसति वा णिच्छोडेति वा वा निश्छोटयति वा निर्भर्त्सयति वा
मेरा उपहास करता है, मुझे बाहर णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति बध्नाति वा रुणद्धि वा छविच्छेदं करोति निकालने की धमकियाँ देता है, मेरी वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं वा, प्रमारं वा नयति, उपद्रवति वा, निर्भर्त्सना करता है, मुझे बांधता है, वा ति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा वस्त्र वा प्रतिग्रहं वा कम्बलं वा पाद
रोकता है, अंगविच्छेद करता है, मूच्छित पडिमगह वा कंबलं वा पायपछण- प्रोञ्छनं आच्छिनत्ति वा विच्छिनत्ति वा
करता है, उपद्रुत करता है, वस्त्र, पात्र,
कंबल, पादपोंच्छन आदि का आच्छेदन मच्छिदति वा विच्छिदति वा भिनत्ति वा अपहरति वा ।
करता है, विच्छेदन करता है, भेदन करता भिदति वा अवहरति वा।
है या अपहरण करता है। २. दित्तचित्ते खलु अयं पुरिसे। २. दप्तचित्तः खलु अयं पुरुषः । तेन मां २. यह पुरुष दृप्तचित्त---उन्मत्त है, इस तेण मे एस परिसे अक्कोसति एष पूरुषः आक्रोशति वा अपहसति वा
लिए यह मुझ पर आक्रोश करता है, मुझे वा अवहसति वा णिच्छोडेति वा निश्छोट यति वा निर्भर्त्सयति वा बध्नाति
गाली देता है, मेरा उपहास करता है, णिभंछेति वा बंधेति वा रुंभति वा रुणद्धि वा छविच्छेदं करोति वा, मुझे बाहर निकालने की धमकियाँ देता वा छविच्छेदं करेति वा, पमारं प्रमारं वा नयति, उपद्रवति वा, वस्त्रं है, मेरी निर्भर्त्सना करता है, मुझे बाँधता वा णेति, उद्दवेइ वा, वत्थं वा वा प्रतिग्रहं वा कम्बलं वा पादप्रोञ्छनं है, रोकता है, अंगविच्छेद करता है, पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुंछण
मूच्छित करता है, उपद्रुत करता है, वस्त्र,
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