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ठाणं (स्थान)
स्थान ५: सूत्र ३८-३६ अण्णातचरए, अण्णइलायचरए, अज्ञातचरकः, अन्नग्लायकचरकः, मौन- १. अज्ञातचरक-जाति, कुल आदि को मोणचरए, संसट्टक प्पिए, तज्जात- चरकः, संसृष्ट कल्पिकः, तज्जातसंसृष्ट- जताये बिना भोजन लेने वाला, संसदकप्पिए। कल्पिकः ।
२. अन्नग्लायकचरक - विकृत अन्न को खाने वाला, ३. मौनचरक-बिना बोले भिक्षा लेने वाला, ४. संसृष्टकल्पिक-लिप्त हाथ या कड़छी आदि से भिक्षा लेने वाला, ५. तज्जात संसृष्टकल्पिक---देय द्रव्य से लिप्त हाथ, कड़छी आदि से भिक्षा लेने
बाला। ३८. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महा- ३८. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों
के लिए पांच स्थान सदा वणित किए हैं, महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं वीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वणि
कोर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताई तानि नित्यं कीर्तितानि नित्यं उक्तानि
किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैंणिच्चं बुइयाइं णिच्चं पसत्थाई नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि १. औपनिधिक-पास में रखे हुए भोजन णिच्च° अब्भणुण्णाताई भवंति, भवन्ति, तद्यथा
को लेने वाला, तं जहा.-.
२. शुद्धषणिक-निर्दोष या व्यंजन
रहित आहार लेने वाला, उवणिहिए, सुद्धेसणिए, औपनिधिकः, शुद्धषणिकः, संख्यादत्तिकः,
३. संख्यादत्तिक-परिमित दत्तियों का संखादत्तिए, दिठुलाभिए, दृष्टलाभिकः, पृष्टलाभिकः।
आहार लेने वाला, पुट्ठलाभिए।
४. दृष्टलाभिक—सामने दीखने वाले आहार आदि को लेने वाला, ५. पृष्टलाभिक-'क्या भिक्षा लोगे' ?
यह पूछे जाने पर ही भिक्षा लेने वाला। ३६. पंच ठाणाई 'समणणं भगवता पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महा- ३६. श्रमण भगवान महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं वीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वणि
के लिए पांच स्थान सदा वणित किए हैं, णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई तानि नित्यं कत्तितानि नित्यं उक्तानि
कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित
किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैंणिचं बइयाइं णिच्चं पसत्थाई नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि
१. आचाम्लिक-ओदन, कुलमाष आदि णिच्चं अब्भणुण्णाताई भवंति, तं भवन्ति, तद्यथा
में से कोई एक अन्न खाकर किया जाने जहा
वाला तप,
२. निविकृतिक-घृत आदि विकृति का आयंबिलिए, णिव्विइए, आचाम्लिकः, निर्विकृतिकः, पूर्वाद्धिकः,
त्याग करने वाला, पुरिमडिए, परिमितपिंडवातिए, परिमितपिण्डपातिकः, भिन्नपिण्ड- ३. पूर्वाधिक —दिन के पूर्वार्ध में भोजन भिपणपिंडवातिए। पातिकः ।
नहीं करने वाला, ४. परिमितपिण्डपातिक-परिमित द्रव्यों की भिक्षा लेने वाला, ५. भिन्नपिण्डपातिक-भोजन के टुकड़ों की भिक्षा लेने वाला।
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