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ठाणं (स्थान)
४०. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता
महावीरेण समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्च कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्च अन्भणुष्णाताई भवंति तं जहा
अरसाहारे, विरसाहारे, अंताहारे, अरसाहारः, विरसाहारः, अन्त्याहारः, पंताहारे, लूहाहारे । प्रान्त्याहारः, रूक्षाहारः ।
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पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वर्णितानि नित्यं कीर्त्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा—
४१. पंच ठाणाई 'समणेणं भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं ' अब्भणुष्णाताई भवंति तं जहा -
अरसजीवो, विरसजीवी, अरसजीवी, विरसजीवी, अन्त्यजीवी, अंतजीवी, पंतजीवी, लूहजीवी । प्रान्त्यजीवी, रूक्षजीवी ।
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पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वणितानि नित्यं कीर्त्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा—
४२. पंच ठाणाई 'समणेण भगवता महावीरेण समणाणं णिग्गंथाणं णिच्च वण्णिताई णिच्चं कित्तिताई णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्चं अब्भणुष्णाताई भवंति तं जहाठाणातिए, उक्कुडुआस थिए, स्थानायतिकः, उत्कुटुकासनिकः, पमिट्टाई, वीरास णिए णेस ज्जिए । प्रतिमास्थायी, वीरासनिकः नैषधिकः ।
पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वर्णितानि नित्यं कीत्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा
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स्थान ५ : सूत्र ४०-४२ ४०. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशसित किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैं
१. अरसाहार हींग आदि के बधार से रहित भोजन लेने वाला, २ . विरसाहारपुराने धान्य का भोजन करने वाला, ४. प्रान्त्याहार,
३. अन्त्याहार,
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५. रूक्षाहार ।
४१. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैं१. अरसजीवी जीवन-भर अरस आहार करने वाला, २ विरसजीवी-जीवनभर विरस आहार करने वाला, ३. अन्त्यजीवी, ४. प्रान्त्यजीवी
५. रूक्षजीवी ।
४२. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित किए हैं. अभ्यनुज्ञात किए हैं१. स्थानायतिक कायोत्सर्ग मुद्रा से युक्त होकर दोनों बाहुओं को घुटनों की ओर झुकाकर खड़ा रहने वाला, २. उत्कुटुकासनिक - उकड़ बैठने वाला, ३. प्रतिमास्थायी प्रतिमाकाल कायोत्सर्ग की मुद्रा में अवस्थित, ४. वीरासनिक " - - वीरासन की मुद्रा में अवस्थित,
में
५. नैषधिक२ विशेष प्रकार से वंटने
वाला ।
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