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________________ ठाणं (स्थान) ५५४ पिच्चमन्भणुष्णाताई भवंति नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा— तं जहा खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, क्षान्तिः, मुक्तिः, आर्जवं मार्दवं लाघलाघवे । वम् ! ३५. पंच ठाणाई समषेण भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताई णिच्चं कित्तिताइं frei बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्च' अन्भणुष्णताई भवंति तं जहा पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वणितानि नित्यं कीर्त्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा— सच्चे, संजमे, तत्रे, चियाए, सत्यं, संयमः, तपः, त्यागः, ब्रह्मचर्य - बंभचेरवासे । ३६. पंच ठाणाई समणेणं 'भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्चं कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई fret अब्भणुष्णाताई भवंति तं जहा - उक्खित्तचरए णिक्खित्तचरए, अंतरए, पंतचरए, लूहचरए । ३७. पंच ठाणाई 'समणेण भगवता महावीरेणं समणाणं णिग्गंथाणं णिच्चं वण्णिताइं णिच्च कित्तिताइं णिच्चं बुइयाई णिच्चं पसत्थाई णिच्च' अब्भणुष्णाताई भवंति तं जहा - Jain Education International वासः । पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वणितानि नित्यं कीर्त्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा— उत्क्षिप्तचरकः, निक्षिप्तचरकः, अन्त्य - चरकः, प्रान्त्य चरकः, रूक्षचरकः । पञ्च स्थानानि श्रमणेन भगवता महावीरेण श्रमणानां निर्ग्रन्थानां नित्यं वर्णितानि नित्यं कीर्त्तितानि नित्यं उक्तानि नित्यं प्रशस्तानि नित्यं अभ्यनुज्ञातानि भवन्ति, तद्यथा— For Private & Personal Use Only स्थान ५ : सूत्र ३५-३७ किए हैं, अभ्यनुज्ञात [ अनुमत] किए 2 १. क्षांति, २. मुक्ति, ३. आर्जव, ४. मार्दव, ५. लाघव । ३५. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैं २४ - १. सत्य, २. संयम, ३. तप, ४. त्याग, ५. ब्रह्मचर्यवास । ३६. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैं १. उत्क्षिप्तचरक - पाक-भाजन से बाहर निकाले हुए भोजन को ग्रहण करने वाला, २. निक्षिप्तचरक - पाक-भाजन में स्थित भोजन को ग्रहण करने वाला, ३. अन्त्यचरक "बचा खुचा भोजन करने वाला, ४. प्रान्त्य चरक बासी भोजन करने वाला । ५. रूक्षचरक रूखा भोजन ग्रहण करने वाला । ३७. श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों के लिए पांच स्थान सदा वर्णित किए हैं, कीर्तित किए हैं, व्यक्त किए हैं, प्रशंसित किए हैं, अभ्यनुज्ञात किए हैं www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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