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ठाणं (स्थान)
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स्थान ५: आमुख
उपलब्ध होता है। चंचलता उपलब्धि में वाधक होती है। अवधिज्ञान मन की शांतता से उपलब्ध होता है । अभूतपूर्व दृश्यों के देखने से यदि मन क्षब्ध या कुतुहल से भर जाता है तो वह उपलब्ध हुआ अवधिज्ञान भी वापस चला जाता है। यदि मन क्षुब्ध नहीं होता है तो अवधि ज्ञान टिका रहता है।
साधना व्यक्तिगत होती है। जब उसे सामूहिकता का रूप दिया जाता है, तब कई अपेक्षाएं और जुड़ जाती हैं। सामूहिकता में व्यवस्था होती है और नियम होते हैं। जहां नियम होते हैं वहां उनके भंग का भी प्रसंग बनता है। उसकी शुद्धि के लिए प्रायश्चित्त भी आवश्यक होता है। प्रायश्चित्त देने का अधिकारी कौन हो, किसकी बात को प्रामाणिक माना जाए—यह प्रश्न संघबद्धता में सहज ही उठता है। प्रस्तुत स्थान में इस विषय की परम्परा भी संकलित है। यह विषय मुख्यतः प्रायश्चित्त सूत्रों से संबद्ध है। व्यवहार सूत्र में यह चर्चित भी है। किन्तु, प्रस्तुत सूत्र में संख्या का संकलन है, इसलिए इसमें विषयों की विविधता होना स्वाभाविक है। इसीलिए इसमें आचार, दर्शन, गणित, इतिहास और परम्परा--इन सभी विषयों का संग्रह किया गया है।
१.शा
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