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आमुख
प्रस्तुत स्थान में पांच की संख्या से संबद्ध विषय संकलित हैं। यह स्थान तीन उद्देशकों में विभक्त है। इस वर्गीकरण में तात्त्विक, भौगोलिक, ऐतिहासिक, ज्योतिष, योग आदि अनेक विषय हैं। इसमें कुछ विषय ज्ञानवर्धक होने के साथ-साथ सरस, आकर्षक और व्यावहारिक भी हैं। निदर्शन के लिए कुछेक प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
मलिनता या अशुद्धि आ जाने पर वस्तु की शुद्धि की जाती है। किन्तु , सबकी शुद्धि एक ही साधन से नहीं होती। उसके भिन्न-भिन्न साधन होते हैं। पांच की संख्या के सन्दर्भ में यहां शुद्धि के पांच साधनों का उल्लेख है
मिट्टी शुद्धि का साधन है। इससे बर्तन आदि साफ किए जाते हैं। पानी शुद्धि का साधन है । इससे वस्त्र, पाव आदि अनेक वस्तुओं की सफाई की जाती है। अग्नि शुद्धि का साधन है। इससे सोना, चांदी आदि की शुद्धि की जाती है । मन्त्र भी शुद्धि का साधन है। इससे वायुमण्डल शुद्ध किया जाता है और जाति से बहिष्कृत व्यक्ति को शुद्ध कर जाति में सम्मिलित किया जाता है । ब्रह्मचर्य शुद्धि का साधन है। इसके आचरण से आत्मा की शुद्धि होती है।
___ मन की दो अवस्थाएं होती हैं- सुषुप्ति और जागृति । जो जागता है, वह पाता है और जो सोता है, वह खोता है। जागृति हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है । साधना का अर्थ ही है-निरन्तर जागरण । जब संयत साधक अपनी साधना में सुप्त होता है तो उस समय उसके शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श जागते हैं। जब ये जागृत होते हैं तब साधक साधना से दूर हो जाता है। जब संयत साधक अपनी साधना में जागृत रहता है तब शब्द, रूप, गंध और स्पर्श सुप्त रहते हैं; उस समय मन पर इनका प्रभाव नहीं रहता। वे अकिचित्कर हो जाते हैं।
असंयत मनुष्य साधक नहीं होता। वह चाहे जागृत (निद्रामुक्त) हो अथवा सुप्त हो---दोनों ही अवस्थाओं में उसके शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श जागृत रहते हैं, व्यक्ति को प्रभावित किए रहते हैं।
बहिर्मुख और अन्तर्मुख ये दो मन को अवस्थाएं हैं। जब व्यक्ति बहिर्मुख होता है तब मन को बाहर दौड़ने के लिए पांच इन्द्रियों का खुला क्षेत्र मिल जाता है। कभी वह मधुर और कटु शब्दों में रम जाता है तो कभी नाना प्रकार के रूपों व दृश्यों में मुग्ध हो जाता है। कभी मीठी सुगंध को लेने में तन्मय बन जाता है तो कभी दुर्गन्ध से दूर हटने का प्रयास करता है। कभी खट्टा, मीठा, कडुआ, कसैला और तिक्त रसों में आसक्त होता है तो कभी मृदु और कठोर स्पर्श में अपने को खो देता है। इन पांच इन्द्रियों के विषयों में मन घूमता रहता है। यह मन की चंचल अवस्था है। जब मन अन्तर्मुखी बनना चाहता है तो उसे बाह्य भटकन को छोड़कर भीतर आना होता है अपने भीतर झांकना होता है। भीतरी जगत् बाह्य दुनियां से अधिक विचित्र और रहस्यमय है ।
प्रतिमा साधना को पद्धति है। इसमें तपस्या भी की जाती है और कायोत्सर्ग भी किया जाता है। पांचवां स्थानक होने के कारण यहां संख्या की दृष्टि से पांच प्रतिमाओं का उल्लेख है-भद्रा, सुभदा, महाभद्रा, सर्वतोभद्रा और भद्रोत्तरा। दूसरे स्थान में प्रतिमाओं के आलापक में भद्रोत्तरा को छोड़ शेष चार प्रतिमाओं का नामोल्लेख हुआ है।
___ मन की दो अवस्थाएं होती हैं-स्थिर और चंचल। पानी स्थिर और शान्त रहता है तभी उसमें वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब हो सकता है। वात, पित और कफ के सम (शान्त) रहने से शरीर स्वस्थ रहता है। मन की स्थिरता से ही कुछ
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३.५।१३५ । ४. ५।१८।
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