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________________ ठाणं (स्थान) पुक्खरकण्णियासंठाणसं ठिए, वट्टे पडिपुण्णचंद संठाणसंठिए, एगं जो सय सहसं विक्खभेणं, आयाम कणिकासंस्थानसंस्थितः, वृत्तः परिपूर्णचन्द्रसंस्थानसंस्थितः, एकं योजनशतसहस्र आयामविष्कम्भेण त्रीणि तिष्णि योजनशतसहस्राणि षोडषसहस्राणि द्वे जोयणसहस्सा इं सोलस- च सप्तविंशति योजनशतं त्रयश्च क्रोशाः सहस्साइं दोणि य सत्तावीसे अष्टाविशति च धनुः शतं त्रयोदशांगुलानि जोयणसए तिष्णि य कोसे अर्धाङ्गुलं च किचिद्विशेषाधिकः अट्ठावीसं च धणुस परिक्षेपेण । तेरसगुलाई अर्द्धगुलगं च fafa विसेसाहिए पक्खिवेणं । महावीर - निव्वाण-पदं २४६. एगे समणे भगवं महावीरे इमीसे ओप्पणी चवीसा तित्थगराणं चरमतित्थयरे सिद्धे बुद्धे ते अंतगडे परिणिव्वुर्डे सव्वदुक्खपणे । देव-पदं २५०. अणुत्तरोववाइया णं देवा एवं रण उड़ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता । णक्खत्त-पदं २५१. अद्दाणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते । २५२. चित्ताणक्खत्ते एगतारे पण्णत्ते । २५३. सातिणक्खत्तं एगतारे पण्णत्ते । १७ पण्णत्ता । २५५. एगसमयठितिया अनंता पण्णत्ता | २५६. एगगुणकालगा पोग्गला अनंता पण्णत्ता जाव एगगुणलुक्खा पोग्गला अनंता पण्णत्ता । Jain Education International महावीर - निर्वाण-पदम् एकः श्रमणः भगवान् महावीरः अस्यां अवसर्पिण्यां चतुर्विंशते स्तीर्थकराणां चरमतीर्थकरः सिद्धः बुद्धः मुक्तः अन्तकृतः परिनिर्वृतः सर्व दुःखप्रक्षीणः । नक्षत्र-पदम् आर्द्रा नक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम् । चित्रानक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम् । स्वातिनक्षत्रं एकतारं प्रज्ञप्तम् । २४६. स्थान १ : सूत्र २४-२५६ चक्के के संस्थान जैसा, कमल की कणिका के संस्थान जैसा तथा प्रतिपूर्ण चन्द्र के संस्थान जैसा वृत्त है। वह एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है । उसकी परिधि तीन लाख, सोलह हजार, दो सौ सत्ताईस योजन, तीन कोस, अट्ठाईस धनुष, तेरह अंगुल और अर्द्धाङ गुल से कुछ अधिक है । देव-पदम् देव-पद अणुत्तरोपपातिका देवा एक रत्नि ऊर्ध्वं २५० अनुत्तरोपपातिक देवों की ऊंचाई एक उच्चत्वेन प्रज्ञप्ताः । हाथ की होती है। महावीर - निर्वाण-पद इस अवसर्पिणी के चौबीस तीर्थकरों में चरम तीर्थकर श्रमण भगवान् महावीर अकेले ही सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिवृत और सब दुःखों से रहित हुए। पोग्गल - पदं पुद्गल-पदम् पुद्गल - पद २५४. एगपदेसोगाढा पोग्गला अनंता एकप्रदेशावगाढा : पुद्गला अनन्ता: २५४. एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं । For Private & Personal Use Only नक्षत्र - पद २५१. आर्द्रा नक्षत्र का तारा एक है। २५२. चित्रा नक्षत्र का तारा एक है। २५३. स्वाति नक्षत्र का तारा एक है। प्रज्ञप्ताः । पोग्गला एकसमयस्थितिका: पुद्गला अनन्ता: २५५. एक समय स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं । प्रज्ञप्ताः । एकगुणकालकाः पुद्गला अनन्ता: प्रज्ञप्ताः यावत् एकगुणरूक्षाः पुद्गला अनन्ताः प्रज्ञप्ताः । २५६. एक गुण काले पुद्गल अनन्त हैं । इसी प्रक. र शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शोके एक गुण वाले पुद्गल अनन्त अनन्त हैं। www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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