________________
ठाणं (स्थान)
५३०
स्थान ४ : टि० ११२ चक्षु का विषय होना घट का स्वभाव है। यहां इस अविरुद्ध स्वभाव से ही प्रतिषेध्य का प्रतिषेध है। २. अविरुद्ध-व्यापक-अनुपलब्धिसाध्य—यहां पनस नहीं है। हेतु-- क्योंकि वृक्ष नहीं है। वृक्ष व्यापक है, पनस व्याप्य । यह व्यापक की अनुपलब्धि में व्याप्य का प्रतिषेध है। ३. अविरुद्ध-कार्य-अनुपलब्धिसाध्य ---यहां अप्रतिहत शक्ति वाले बीज नहीं हैं। हेतु—क्योंकि अंकुर नहीं दीख रहे हैं। यह अविरोधी कार्य की अनुपलब्धि के कारण का प्रतिषेध है। ४. अविरुद्ध-कारण-अनुपलब्धिसाध्य—इस व्यक्ति में प्रशमभाव नहीं है। हेतु —क्योंकि इसे सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। प्रशमभाव-सम्यग्दर्शन का कार्य है। यह कारण के अभाव में कार्य का प्रतिषेध है। ५. अविरुद्ध-पूर्वचर-अनुपलब्धि-- साध्य-एक मुहूर्त के पश्चात् स्वाति का उदय नहीं होगा। हेतु-क्योंकि अभी चित्रा का उदय नहीं है। यह चित्रा के पूर्ववर्ती उदय के अभाव द्वारा स्वाति के उत्तरवर्ती उदय का प्रतिषेध है। ६ अविरुद्ध-उत्तरचर-अनुपलब्धि-- साध्य.एक मुहुर्त पहले पूर्वभाद्रपदा का उदय नहीं हुआ था। हेतुक्योंकि उत्तरभाद्रपदा का उदय नहीं है। यह उत्तरभाद्रपदा के उत्तरवर्ती उदय के अभाव के द्वारा पूर्वभाद्रपदा के पूर्ववर्ती उदय का प्रतिषेध है। ७. अविरुद्ध-सहचर-अनुपलब्धि-- साध्य -इसे सम्यग्ज्ञान प्राप्त नहीं है। हेतु--क्योंकि सम्यग्दर्शन नहीं है। सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन दोनों नियत सहचारी हैं । इसलिए यह एक के अभाव में दूसरे का प्रतिषेध है। २. विधि-साधक अनुपलब्धि-हेतु-विधि-साधक निषेध हेतु
साध्य के विरुद्ध रूप की उपलब्धि न होने के कारण जो हेतु उसकी सता को सिद्ध करता है, वह विरुद्धानुपलब्धि कहलाता है। विरुद्धानुपलब्धि हेतु के पांच प्रकार हैं
१. विरुद्ध-कार्य-अनुपलब्धिसाध्य--इसके शरीर में रोग है।
हेतु-क्योंकि स्वस्थ प्रवृत्तियां नहीं मिल रही हैं। स्वस्थ प्रवृत्तियों का भाव रोग-विरोधी कार्य है। उसकी यहां अनुपलब्धि है।
२. विरुद्ध-कारण-अनुपलब्धिसाध्य-यह मनुष्य कष्ट में फंसा हुआ है।
हेतु-क्योंकि इसे इष्ट का संयोग नहीं मिल रहा है। कष्ट के भाव का विरोधी कारण इष्ट संयोग है, वह यहां अनुपलब्ध है।
३. विरुद्ध-स्वभाव-अनुपलब्धि-- साध्य-वस्तु समूह अनेकान्तात्मक है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org