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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : टि० १११ बनते हैं। कोई आदमी उन्हें गिराकर खाए तो या ले जाए उनका क्या होगा ? क्या वे मनुष्य शरीर के आश्रित जीव
बनेंगे? ऐसा नहीं होता, इसलिए वह भी नहीं होता। प्रतिनिभ
एक व्यक्ति ने यह घोषणा की कि जो व्यक्ति मुझे अपूर्व बात सुनाएगा, उसे मैं लाख रुपए के मूल्य का कटोरा दूंगा । इस घोषणा से प्रेरित हो बहुत लोग आए और उन्होंने नई-नई बातें सुनाई। उसकी धारणा-शक्ति प्रबल थी। वह जो भी सुनता उसे धारण कर लेता। फिर सुनाने वालों से कहता—यह अपुर्व नहीं है। इसे मैं पहले से ही जानता हूं । इस प्रकार वह आने वालों को निराश लौटा देता। एक सिद्ध पुत्र आया। उसने कहा
तुज्झ पिया मज्झ पिउणो, धारेइ अणूणयं सयसहस्सं।
__जइ सुय पुत्वं दिज्जउ, अह न सुयं खोरयं देहि ॥१॥ तेरा पिता मेरे पिता के लाख रुपये धारण कर रहा है। यदि यह श्रुत पूर्व है तो वे लाख रुपए लौटाओ और यदि यह श्रुत पूर्व नहीं है तो लक्ष मूल्य का कटोरा दो।
यह प्रतिछलात्मक आहरण है।
किसी ने पूछा- तुम किस लिए प्रव्रज्या का पालन कर रहे हो ? मुनि ने कहा- उसके बिना मोक्ष नहीं होता, इसलिए कर रहा हूं।
मुनि ने पूछा-तुम अनाज किस लिए खरीद रहे हो? वह बोला---खरीदे बिना वह मिलता नहीं।
मुनि बोले-खरीदे बिना अनाज नहीं मिलता इसलिए तुम खरीद रहे हो। इसी प्रकार प्रव्रज्या के बिना मोक्ष नहीं मिलता, इसलिए मैं प्रव्रज्या का पालन कर रहा हूं।'
यापक...
इसमें बादी समय का यापन करता है। वृत्तिकार ने यहां एक उदाहरण प्रस्तुत किया है.----
एक स्त्री अपने पति से सन्तुष्ट नहीं थी। वह किसी जार पुरुष के साथ प्रेम करती थी। घर में पति रहने से उसके कार्य में वह बाधक-स्वरूप था। उसने एक उपाय सोचा। पति को उष्ट्र का लिड (मल, मींगणा) देकर कहा--प्रत्येक मींगणा एक-एक रुपए में बेचना। इससे कम किसी को मत बेचना । ऐसी शिक्षा दे उसको उज्जयिनी भेज दिया। पीछे से निर्भय होकर जार के साथ भोग करती रही। समय को बिताने के लिए पति को दूर स्थान पर भेज दिया। ऊंट का लिंड एक रुपए में कौन लेता, इसलिए पूरे लिड बेचने में उसे काफी समय लग गया। इस प्रकार उसने कालयापना की।
हेतु के पीछे बहुल विशेषण लगाने से प्रतिवादी वाच्य को जल्दी नहीं समझ पाता। यथा, वायु सचेतन होती है, दूसरे की प्रेरणा से तिर्यग और अनियत चलती है, गतिमान होने से, जैसे--गाय का शरीर। यहां प्रतिवादी जल्दी से अनेकान्तिक आदि दोष बताने में समर्थ नहीं होता। अथवा अप्रतीत व्याप्ति के द्वारा व्याप्ति-साधक अन्य प्रमाणों से शीघ्रता से साध्य की प्रतीति नहीं कर सकता । अपितु साध्य की प्रतीति में कालक्षेप होता है, जैसे—बौद्धों की मान्यता के अनुसार वस्तु क्षणिक है, सत्त्व होने के कारण । सत्त्व हेतु सुनते ही प्रतिवादी को क्षणिकत्व का ज्ञान नहीं होता, क्योंकि सत्त्व अर्थ-क्रियाकारी होता है। यदि सत्त्व अर्थ-क्रियाकारी न माना जाए तो वन्ध्या का पुत्र भी सत्त्व कहलाएगा। नित्य वस्तु एक रूप होती है, उसमें अर्थ-क्रिया न तो कम से होती है और न एक साथ होती है। इसलिए क्षण से भिन्न वस्तु में अर्थ क्रिया कारित्व नहीं होता। इस प्रकार क्षणिक ही अर्थ-क्रियाकारी होता है। यह जो सत्त्व लक्षण वाला हेतू है, वह साध्य की सिद्धि में काल का यापन करता है।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र २४७ ।
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