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________________ ठाणं (स्थान) ५२४ स्थान ४ : टि० १११ को अन्यत्र जाने का आदेश दे दिया। पुरे विवरण के लिए देखें-दशवकालिक हारिभद्रीया ति, पत्र ४५। आहरणतद्देश चार प्रकार का होता है-- १. अनुशिष्टि-- सद्गुणों के कथन से किसी वस्तु को पुष्ट करना । 'वह करो'----इस प्रकार जहां कहा जाता है, उसे अनुशिष्टि कहते हैं। जैसे—सुभद्रा ने अपने आरोप को निर्मूल करने के लिए चालनी से पानी खींचकर चम्पा नगरी के नगर द्वारों को खोला, तब वहां के महाजनों ने यह शीलवती है ऐसा अनुशासन-कथन किया था। २. उपलम्भ अपराध करने वाले शिष्यों को उपालम्भ देना। जैसे---विकाल वेला में स्थान पर आने से आर्या चन्दना ने साध्वी मृगावती को उपालम्भ दिया था। ३. पृच्छा --- जिसमें क्या, कैसे, किसने आदि प्रश्नों का समावेश हो, वह दृष्टान्त। जिस प्रकार कोणिक ने भ० महावीर से प्रश्न किए थे। कोणिक श्रेणिक का पुत्र था। एक बार उसने भगवान् महावीर से पूछा-भंते ! चक्रवर्ती मरकर कहां जाते हैं? भगवान ने कहा-सातवीं नरक में। उसने पूछा--मैं कहां जाऊंगा? भगवान् ने कहा-छठी नरक में उसने फिर पूछा-भंते ! मैं सातवीं नरक में क्यों नहीं जाऊंगा? भगवान् ने कहा-चक्रवर्ती सातवीं नरक में जाते है। उसने कहा-क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूं? मेरे पास भी चक्रवर्ती की भांति हाथी-घोड़े आदि हैं। भगवान् बोले-तेरे पर रत्ननिधि नहीं है। यह सुनकर कोणिक कृत्रिम रत्न तैयार करवा कर भरत क्षेत्र को जीतने चला। वैताढ्य के गुफाद्वार पर कृतमालिक यक्ष ने उसे मार डाला। वह छठी नरक में गया। यह 'पृच्छा ज्ञात' का उदाहरण है। ४. निश्रावचन किसी के माध्यम से दूसरे को प्रबोध देना । भगवान् महावीर ने गौतम के माध्यम से दूसरे अनेक शिष्यों को प्रबोध दिया है। उत्तराध्ययन का 'द्रुमपत्रक' अध्ययन इसका उदाहरण है-- आहरणतद्दोष के चार प्रकार हैं१. अधर्मयुक्त जो दृष्टान्त सुनने वाले के मन में अधर्म-बुद्धि पैदा करता है । किसी के पुत्र को मकोड़े ने काट खाया। उसके पिता ने सारे मकोड़ों के बिलों में गर्म जल डलवा कर उनका नाश कर दिया। चाणक्य ने यह सुना। उसके मन में अधर्म-बुद्धि उत्पन्न हुई और उसने भी उपाय से सभी चोरों को विष देकर मरवा डाला। २. प्रतिलोम प्रतिकूलता का बोध देने वाला दृष्टान्त । इस प्रकार के दृष्टान्त का दूषण यह है कि वह श्रोता में दूसरों का अपकार करने की बुद्धि उत्पन्न करता है। ३. आत्मोपनीत--- जो दृष्टान्त परमत को दूषित करने के लिए दिया जाता है, किन्तु वह अपने इष्ट मत को ही दूषित कर देता है, जैसे-एक बार एक राजा ने पिंगल नाम के शिल्पी से तालाब के टूटने का कारण पूछा। उसने कहा-राजन् ! जहां तालाब टूटा है वहां यदि अमुक-अमुक गुण वाले पुरुष को जीवित गाड़ा जाए, तो फिर यह तालाब कभी नहीं टूटेगा। राजा ने अमात्य से ऐसे पुरुष को ढूंढने की आज्ञा दी। अमात्य ने कहा-राजन् ! यह पिंगल उक्त गुणों से युक्त है। राजा ने उसी पिंगल को वहां जीवित गड़वा दिया। पिंगल ने जो बात कही, वह उसी पर लागू हो गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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