________________
५२३
ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : टि० १११ बारह वर्षों में द्वैपायन ऋषि द्वारा होगा। ऋषि ने जब यह सुना तब वे इसको टालने के लिए बारह वर्षों तक द्वार
वती को छोड़ अन्यत्र चले गए। यह काल का अपाय है। भाव अपाय
भाव से होने वाली अनिष्ट की प्राप्ति । देखें-- दशवकालिक हारिभद्रीयावृत्ति, पत्र ३७-३६ । उपाय--
इच्छित वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रयत्न-विशेष का निर्देश करने वाला दृष्टान्त । यह चार प्रकार का होता है। द्रव्य उपाय, क्षेत्र उपाय, काल उपाय, भाव उपाय । द्रव्य उपाय
किसी उपाय-विशेष से ही स्वर्ण आदि धातु प्राप्त किया जा सकता है। इसकी विधि बताने वाला धातुवाद आदि। क्षेत्र उपाय
क्षेत्र का परिकर्म करने का उपाय । हल आदि साधन क्षेत्र को तैयार करने के उपाय हैं। नौका आदि समुद्र को पार करने का उपाय है। काल उपाय
काल का ज्ञान करने का उपाय । घटिका, छाया आदि के द्वारा काल-ज्ञान करना। भाव-उपाय--
मानसिक भावों को जानने का उपाय। देखें-दशवकालिक हारिभद्रीयावृत्ति, पत्र ४०-४२। स्थापना कर्म
१. जिस दृष्टान्त से परमत के दूषणों का निर्देश कर स्वमत की स्थापना की जाती है, वह स्थापना कर्म
कहलाता है। जैसे-सूवकृतांग के द्वितीय श्रुतस्कंध का पुंडरीक नाम का पहला अध्ययन। २. अथवा प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत दोषों का निराकरण कर अपने मत की स्थापना करना । जैसे-एक मालाकार अपने फूल बेचने के लिए बाजार में चला जा रहा था। उसे टट्टी जाने की बाधा हुई। वह राजमार्ग पर ही बैठकर अपनी बाधा से निवृत्त हुआ। कहीं अपवाद न हो, इसलिए उसने उस मल पर फूल डाल दिए और लोगों के पूछने पर कहा कि यहां हिंगुशीव' नाम का देव उत्पन्न हुआ है। लोगों ने भी वहां फूल चढ़ाए। वहां एक मन्दिर बन गया। इस दृष्टान्त में मालाकार ने प्राप्त दूषण का निराकरण कर अपने मत की स्थापना कर दी। ३. वाद काल में सहसा व्यभिचारी हेतु को प्रस्तुत कर, उसके समर्थन में जो दृष्टान्त दिया जाता है, उसे
स्थापना कर्म कहते हैं। प्रत्युत्पन्नविनाशी
तत्काल उत्पन्न किसी दोष के निराकरण के लिए किया जाने वाला दृष्टान्त।
एक गांव में एक वणिक् परिवार रहता था। उसके अनेक पुत्रियां और पुत्र-वधुएं थीं। एक बार नृत्यमंडली उस घर के पास ठहरी। घर की नारियां उन गंधर्वो में आसक्त हो गई। बनिए ने यह जाना। उसने उपाय से उन गन्धर्वो के नृत्य में विघ्न उपस्थित करना प्रारम्भ किया। उन्होंने राजा से शिकायत की। राजा ने बनिए को बुलाया । बनिया बोला- मैं तो अपना काम करता हूं, प्रतिदिन इस समय पूजा करता है । तब राजा ने उन गन्धों
१. स्थानांगवृत्ति,पत्र २४३ । २ वही, पव २४३ । ३. वही, पत्र २४३।
४. दशवैकालिक, जिनदास चूणि, पृष्ठ ४४। ५. स्थानांगवृत्ति, पत्र २४३ । ६ वही, पत्र २४३ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org