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________________ ठाणं (स्थान) ५२२ स्थान ४ : टि० १११ असभ्य वचनात्मक उदाहरण को भी आहरणतदोष कहा जाता है। मैं असत्य का सर्वथा परिहार करता हूं, जैसे- गुरु के मस्तक को काटना । यह असभ्य वचनात्मक दृष्टान्त है। अपने साध्य की सिद्धि करते हुए दूसरे दोष को प्रस्तुत करना भी आहरणतदोष है। जैसे किसी ने कहा कि लौकिक मुनि भी सत्य धर्म की वांछा करते हैं, जैसे --- वरं कृपशताद्वापी, वरं वापीशताक्रतुः। वरं क्रतुशतात्पुत्रः, सत्यं पुत्रशताद्वरम् ।। सौ कुंओं से एक वापी श्रेष्ठ है। सौ वापियों से एक यज्ञ श्रेष्ठ है। सौ यज्ञों से एक पुत्र श्रेष्ठ है और सौ पुत्रों से सत्य श्रेष्ठ है। इससे श्रोता के मन में पुत्र, यज्ञ आदि संसार के कारणभूत तत्वों के प्रति धर्म की भावना पैदा होती है, यह भी दृष्टान्त का दोष है।' उपन्यासोपनय वादी अपने अभिमत अर्थ की सिद्धि के लिए दृष्टान्त का उपन्यास करता है, जैसे--आत्मा अकता है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे-आकाश। ऐसा करने पर प्रतिवादी इसका खण्डन करने के लिए इसके विरुद्ध दृष्टान्त का उपन्यास करता है, जैसेआत्मा आकाश की भांति अकर्ता है तो यह भी कहा जा सकता है कि आत्मा अभोक्ता है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे आकाश । यह विरुद्धार्थक उपन्यास है। अपाय - इसका अर्थ है----हेय-धर्म का ज्ञापक दृष्टान्त । वह चार प्रकार का होता है। द्रव्य अपाय, क्षेत्र अपाय, काल अपाय, भाव अपाय। द्रव्य अपाय.... इसका अर्थ है---द्रव्य या द्रव्य से होने वाली अनिष्ट की प्राप्ति । एक गांव में दो भाई रहते थे। वे धन कमाने सौराष्ट्र देश में गए। धनार्जन कर वे पुनः अपने देश लौट रहे थे। दोनों के मन में पाप समा गया। एक-दूसरे को मारने की भावना से कोई उपाय ढूंढने लगे। यह भेद प्रगट होने पर उन्होंने धन से भरी नौली को एक नदी में डाल दिया। एक मछली उसे निगल गई। वही मछली घर लाई गई। बहन ने उसका पेट चीरा। नौली देख उसका मन ललचा गया। मां ने देख लिया। दोनों में कलह हुआ। लड़की ने मां के मर्म-स्थान पर प्रहार किया। वह मर गई। वह धन उसकी मृत्यु का कारण बना। यह द्रव्य अपाय है। क्षेत्र अपाय क्षेत्र या क्षेत्र से होने वाला अपाय । दशाह हरिवंश के राजा थे। कंस ने मथुरा का विध्वंस कर डाला । राजा जरासंध का भय बढ़ा, तब उस क्षेत्र को अपाय-बहुल जानकर दशाह वहां से द्वारवती चले गए।' यह क्षेत्र अपाय है। काल अपाय-- काल या काल से होने वाला अपाय। कृष्ण के पूछने पर अरिष्टनेमि ने कहा कि द्वारवती नगरी का नाश ३. देखें-दशवकालिक हारिभद्रीयावृत्ति, पत्र ३५,३६ । ४. स्थानांगवृत्ति, पत्र २४३ । १. स्थानांगवृत्ति, पत्र २४२ । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र २४२ : तथा वादिना अभिमतार्थसाधनाय कृते वस्तूपन्यासे तविघटनाय यः प्रतिवादिना विरुद्धार्थोपनय: क्रियते पर्यनुयोगोपन्यासे वा य उत्तरोपनयः स उपन्यासोपनयः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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