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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : टि० ४७
कुल कथा
अहो चौलुक्यपुत्रीणां, साहसं जगतोऽधिकम् ।।
पत्युर्म त्यौ विशन्त्यग्नौ, या: प्रेमरहिता अपि ।। चौलुक्य पुत्रियों का साहस संसार में सबसे अधिक और विस्मयकारी है, जो पति की मृत्यु होने पर प्रेम के बिना भी अग्नि में प्रवेश कर जाती है। रूपकथा
चन्द्रवक्ता सरोजाक्षी, सद्गी: पीनधनस्तनी।
कि लाटी नो मता साऽस्य, देवानामपि दुर्लभा ।। चन्द्रमुखी, कमलनयना, मधुर स्वर वाली और पुष्ट स्तन वाली लाट देश की स्त्री क्या उसे सम्मत नहीं है ? जो देवों के लिए भी दुर्लभ है। नेपथ्य कथा
धिग् नारी रौदीच्या, बहुवसनाच्छादितांगुलतिकत्वात् ।
यद् यौवनं न यूनां चक्षुर्मोदाय भवति सदा ।। उत्तराचल की नारी को धिक्कार है, जो अपने शरीर को बहुत सारे वस्त्रों से ढंक लेती है। उसका यौवन युवकों के चक्षुओं को आनंद नहीं देता।
भाष्यकार ने स्त्री-कथा से होने वाले निम्न दोषों का निर्देश किया है-- १. स्वयं के मोह की उदीरणा। २. दूसरों के मोह की उदीरणा । ३. जनता में अपवाद। ४. सूत्र और अर्थ के अध्ययन की हानि। ५. ब्रह्मचर्य की अगुप्ति। ६. स्त्री प्रसंग की संभावना। भक्तकथा करने से निम्न निर्दिष्ट दोष प्राप्त हैं१. आहार सम्बन्धी आसक्ति। २. अजितेन्द्रियता। ३. औदरिकवाद–लोगों द्वारा पेटु कहलाना। देशकथा करने से निम्न निर्दिष्ट दोष प्राप्त होते हैं। -- १. राग द्वेष की उत्पत्ति। २. स्वपक्ष और परपक्ष सम्बन्धी कलह । ३. उसके द्वारा कृत प्रशंसा से आकृष्ट होकर दूसरों का उस देश में जाना। राजकथा करने से निम्न निर्दिष्ट दोष प्राप्त होते हैं१. गुप्तचर, चोर आदि होने की आशंका। २. भुक्तभोगी अथवा अभुक्तभोगी का प्रव्रज्या से पलायन । ३. आशंसाप्रयोग--राजा आदि बनने की आकांक्षा।
१. निशीथ भाष्य, गाथा १२१
आय-पर-मोहुदीरणा, उड्डाहो सुत्तमादिपरिहाणी।
बंभवते अगुत्ती, पसंगदोसा य गमणादी ।। २. निशीथभाष्य, गाथा १२४
आहारमंतरेणाति, गहितो जायई स इंगाल । अजितिदिया ओयरिया, वातो व अणुण्णदोसा तु ।।
३. निशीथभाष्य, गाथा १२७
रागद्दोसुप्पत्ती, सपक्ख-परपक्खो य अधिकरणं ।
बहुगुण इमो त्ति देसो, सोत्तुं गमणं च अणेसि ।। ४. निशीथभाष्य, गाथा १३० ।
चारिय चोराहिमरा-हितमारित-संक-कातुकामा वा। भुत्ताभुत्तोहावणं करेज्ज वा आसंसपयोग ।।
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