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ठाणं (स्थान)
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४१. ( सू० १६० )
प्रतिसंलीनता बारह प्रकार के तपों में एक तप है। औपपातिक सूत्र में उसके चार प्रकार बतलाए गए हैं
१. इंद्रियप्रतिसंलीनता ३. योगप्रति संलीनता
२. कषायप्रतिसंलीनता ४. विविक्तशयनासनसेवन' ।
प्रस्तुत सूत्र में कषायप्रतिसंलीनता के साधक व्यक्ति का प्रतिपादन किया गया है, प्रतिसंलीनता का अर्थ है - निर्दिष्ट वस्तु के प्रतिपक्ष में लीन होने वाला । औपपातिक के अनुसार कषायप्रतिसंलीनता का अर्थ इस प्रकार फलित है—
१. क्रोधप्रतिसंलीन- क्रोध के उदय का निरोध और उदयप्राप्त क्रोध को विफल करने वाला । २. मानप्रतिसंलीन—मान के उदय का निरोध और उदयप्राप्त मान को विफल करने वाला । ३. मायाप्रतिसंलीन - माया के उदय का निरोध और उदयप्राप्त माया को विफल करने वाला । ४. लोभप्रतिसंलीन लोभ के उदय का निरोध और उदयप्राप्त लोभ को विफल करने वाला ।
४२. (सू० १६२ )
प्रस्तुत सूत्र में योगप्रति संलीनता के साधक व्यक्ति के तीन प्रकारों तथा इंद्रियप्रतिसंलीनता के साधक का निर्देश किया गया है।
स्थान ४ : टि० ४१-४७
औपपातिक के अनुसार इनका अर्थ इस प्रकार है—
१. मनप्रति संलीन – अकुशल मन का निरोध और कुशल मन का प्रवर्तन करने वाला ।
२. वचनप्रति संलीन --- अकुशल वचन का निरोध और कुशल वचन का प्रवर्तन करने वाला ।
३. काय प्रतिसंलीन कूर्म की भांति शारीरिक अवयवों का संगोपन और कुशल काया की प्रवृत्ति करने वाला । ४. इंद्रियप्रतिसंलीन- पांचों इंद्रियों के विषयों के प्रचार का निरोध तथा प्राप्त विषयों पर राग-द्वेष का निग्रह करने वाला ।
४३-४७ (सू० २४१-२४५ )
प्रस्तुत आलाप में विकथा का सांगोपांग निरूपण किया गया है। कथा का अर्थ है - वचन पद्धति । जिस कथा से संयम में बाधा उत्पन्न होती है— ब्रह्मचर्य प्रतिहत होता है, स्वादवृत्ति बढ़ती है, हिंसा को प्रोत्साहन मिलता है और राजनीतिक दृष्टिकोण का निर्माण होता है, उसका नाम विकथा है। '
वृत्तिकार ने कुछ श्लोक उद्धृत कर विकथा के स्वरूप को स्पष्ट किया है । जातिकथा के प्रसंग में निम्न श्लोक उद्धत है—
१. ओवाइयं, सूत्र ३७ ।
२. ओवाइयं, सून ३७ ।
३. बोवाइयं, सून ३७ ।
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धि ब्राह्मणीर्धवाभावे, या जीवन्ति मृता इव । धन्या मन्ये जने शूद्रीः पतिलक्षेऽप्यनिन्दिताः ।।
जो लाख
ब्राह्मणी को धिक्कार है, जो पति के मरने पर जीती हुई भी मृत के समान है। मैं शूद्री को धन्य मानता हूं पतियों का वरण करने पर भी निन्दित नहीं होती ।
४. स्थानांगत्ति, पन १६६ :
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विरुद्धा संयमबाधकत्वेन कथा – वचनपद्धतिर्विकथा |
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