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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : टि० १६ भरत पर कर देते तो भरत जमीन में गढ़ जाते। किन्तु इतने में ही उनका चैतसिक पराक्रम जाग उठा। वे तत्काल मुनि बने और लम्बे कायोत्सर्ग में खड़े हो गए।
बाहुबली ऐश्वर्यशाली तो थे ही, साथ-साथ शारीरिक और चैतसिक-दोनों पराक्रमों से उन्नत भी थे।
ऐश्वर्य से उन्नत और पराक्रम से प्रणत एक धनवान सेठ रुपये लेकर आ रहा था। रास्ते में जंगल पड़ता था। वह अकेला था। भय उसे सता रहा था। थोड़ी दूर आगे गया, इतने में कुछ व्यक्तियों की आहट सुनाई दी। उसका शरीर कांप उठा। वह इधर-उधर ताण ढूंढ़ने लगा। उसे दिखाई दिया पास में एक मन्दिर । वह उसमें घुसकर देवी से प्रार्थना करने लगा। देवी ने कहा-वत्स ! डर मत । इस दरवाजे को बन्द कर दे। वह बोला---'मां ! मेरे हाथ कांप रहे हैं, मेरे से यह नहीं होगा।'
देवी बोली-तू जोर से आवाज कर।' उसने कहा---'मां ! मेरी जीभ सूख रही है। मेरे से आवाज कैसे हो ?' देवी ने फिर कहा-'यदि तू ऐसा नहीं कर सकता तो एक काम कर, मेरी इस मूर्ति के पीछे आकर बैठ जा।' वह बोला- 'मां ! मेरे पैर स्तब्ध हो गये। मैं यहां से खिसक नहीं सकता।' देवी ने कहा- 'जो इतना क्लीव है, पराक्रमहीन है, मैं ऐसे कायर व्यक्ति की सहायता नहीं कर सकती।' सेठ ऐश्वर्य से सम्पन्न था, किन्तु पराक्रम से प्रणत।
ऐश्वर्य से प्रणत और पराक्रम से उन्नत महाराणा प्रताप का 'भाट' दिल्ली दरबार में पहुंचा। बादशाह अकबर सभा में उपस्थित थे। बहुत से मन्त्रीगण सामने बैठे थे । उसने बादशाह को सलाम की। खुश होने के बनिस्वत बादशाह गुस्से में आ गया। इसका कारण था उसकी अशिष्टता। सामान्यतया नियम था कि जो भी व्यक्ति बादशाह को सलाम करे, वह अपनी पगड़ी उतार कर करे। प्रताप का भाट इसका अपवाद था। उसने वैसे नहीं किया।
बादशाह ने कहा---'तुमने शिष्टता का अतिक्रमण कैसे किया ?' उसने कहा- 'बादशाह साहब ! आपको ज्ञात होना चाहिए, यह पगड़ी महाराणा प्रताप की दी हुई है। जब वे आपके चरणों में नहीं झुकते तो उनकी दी हुई पगड़ी कैसे झुक सकती है ?' सारी सभा स्तब्ध रह गई। उसके स्वाभिमान और अभय की सर्वत्र चर्चा होने लगी।
भाट ऐश्वर्य से प्रणत था, किन्तु उसकी नस-नस में पराक्रम बोल रहा था। वह पराक्रम से उन्नत था।
१६ (सू० १२)
ऋजुता और वक्रता के अनेक मानदण्ड हो सकते हैं। उदाहरणस्वरूप --- १. कुछ पुरुष वाणी से भी ऋजु होते हैं और व्यवहार से भी ऋजु होते हैं। २. कुछ पुरुष वाणी से ऋजु होते हैं, किन्तु व्यवहार से वक्र होते हैं। ३. कुछ पुरुष वाणी से वक्र होते हैं, किन्तु व्यवहार से ऋजू होते हैं। ४. कुछ पुरुष वाणी से भी वक्र होते हैं और व्यवहार से भी वक्र होते हैं।
वक्र और वक्र एक थी वृद्धा ! बुढ़ापे के कारण उसकी कमर झुक गई थी। वह गर्दन सीधी कर चल नहीं पाती थी। बच्चे उसे देख हँसते थे। कुछ शिष्ट और सभ्य व्यक्ति करुणा भी दिखाते थे। बुढ़िया चुपचाप सब सहन कर लेती, लेकिन जब वह लोगों की हँसी देखती तो उसे तरस कम नहीं आती, किन्तु लाचार थी।
एक दिन नारदजी घूमते हुए उधर आ निकले। मार्ग में बुढ़िया से उनकी भेंट हो गई। नारदजी को बड़ी दया
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