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________________ ठाणं (स्थान) ४६६ स्थान ४:टि०४-१५ इस अप्रत्याशित दान के संवाद से मुखरित हो उठा। लोक देखने लगे, जिसने पैसे को भगवान् मान सेवा की, आज अपने ही हाथों से वितरित कर कैसा पुण्य अर्जन कर रहा है। संयोग की बात घर का मूल-मालिक वह सेठ भी आ पहुंचा। उसने जब यह चर्चा सुनी तो सहसा विश्वास नहीं हुआ। वह आया। भीड़ देखी तो हक्का-बक्का रह गया। पुलिस के आदमियों ने दोनों को हिरासत में ले लिया। राजा के सामने वह मामला आया तो राजा का सिर भी घूम गया। मंत्री को इसके निर्णय का अधिकार दिया। मंत्री ने सोचा-'दोनों समान हैं। इनका अन्तर ऊपर से निकालना असंभव है। संभव है, एक विद्या-सम्पन्न है। वही झूठा है।' मंत्री ने सूझ-बूझ से काम लिया। दोनों को सामने खड़ा कर कहा-'जो इस कमल की नाल में से बाहर निकल जाएगा, वह असली।' जो रूप बदलना जानता था, उसने इस शर्त को स्वीकार कर लिया। दूसरे ही क्षण देखते-देखते वह कमल से बाहर निकल आया। मंत्री ने कहा-'पकड़ो इसे, यह नकली सेठ है।' उसने राजा को सही घटना सुनाते हुए कहा-'यदि यह सेठ मेरे साथ दुर्व्यवहार नहीं करता तो आज इसे इतने बड़े धन से हाथ नहीं धोना पड़ता। यह सेठ ऐश्वर्य से सम्पन्न है, किन्तु व्यवहार से प्रणत है।' ऐश्वर्य से प्रणत और व्यवहार से उन्नत घटना जैन रामायण की है। राम, लक्ष्मण और सीता तीनों वनवासी जीवन-यापन करते हुए एक साधारण से गांव में पहुंचे। तीनों को प्यास सता रही थी। वे पानी की टोह में थे। किसी ने अग्नि-होत्री ब्राह्मण का घर बताया। घर साधारण था। गरीबी बाहर झांक रही थी। राम वहां पहुंचे। उस समय घर में ब्राह्मण-पत्नी थी। जैसे ही देखा कि अतिथि आये हैं, वह बाहर आई और बड़े मधुर शब्दों में उनका स्वागत किया। सबके लिए अलग-अलग आसन लगा दिये। सब बैठ गये। ठंडे पानी के लोटे सामने रख दिये। सबने पानी पिया। उसके मृदु और सौम्य व्यवहार से सब बड़े प्रसन्न हुए। ब्राह्मणी ऐश्वर्य से प्रणत थी, किन्तु उसका व्यवहार उन्नत था। ऐश्वर्य से प्रणत और व्यवहार से भी प्रणत ब्राह्मण-पत्नी का कमनीय व्यवहार जिस प्रकार राम, लक्ष्मण और सीता के हृदय को वेध सका, वैसे उसके पति का नहीं। वह उसके सर्वथा उल्टा था। शिक्षा-दीक्षा में उससे बहुत बढ़ा-चढ़ा था, किन्तु व्यवहार से नहीं। जैसे ही वह घर में आया और अतिथियों को देखा तो पत्नी पर बरस पड़ा। क्रोधोन्मत्त होकर बोला-'पापिनी ! यह क्या किया तुमने ? किनको घर में बैठा रखा है ? जानती नहीं तू, मैं अग्निहोत्री ब्राह्मण हूं। घर को अपवित्र कर दिया। देख, ये कितने मैलेकुचेले हैं। तू प्रतिदिन किसी-न-किसी का स्वागत करती रहती है । तू चली जा मेरे घर से।' वह बेचारी शर्म के मारे जमीन में गढ़ गई। सीता के पीछे आकर बैठ गई। ब्राह्मण इतने से भी सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसका क्रोध विकराल बना हुआ था। उसने कहा- मैं अभी जलता हुआ लक्कड़ लाकर तेरे मुंह में डालता हूं।' वह लक्कड़ लाने के लिए उठ खड़ा हुआ। क्रोध में विवेक नहीं रहता। ब्राह्मण ऐश्वर्य और व्यवहार दोनों से प्रणत था। ऐश्वर्य से उन्नत और पराक्रम से उन्नत भगवान् ऋषभनाथ के सौ पुत्रों में से भरत और बाहुबली दो बहुत विश्रुत हैं। भरत चक्रवर्ती थे। इन्हीं के नाम से इस देश का नाम भारत पड़ा। बाहुबली चक्रवर्ती नहीं थे, किन्तु वे एक चक्रवर्ती से भी लोहा लेने वाले थे। भरत को अपने चक्रवतित्व का गर्व था। उन्होंने अपने छोटे अठानबे भाइयों का राज्य ले लिया। उनकी लिप्सा शान्त नहीं बनी। उन्होंने बाहुबली के पास दूत भेजा। बाहुबली को अपने पौरुष पर भरोसा था और अपनी प्रजा पर। उन्होंने भरत के आदेश को चुनौती दे दी। भरत तिलमिला उठे। उन्होंने बाहुबली के प्रदेश बाल्हीक पर आक्रमण कर दिया। बाल्हीक की प्रजा इस अन्याय के विरुद्ध तैयार होकर मैदान में उतर आई । भरत के दांत खट्टे हो गए। बहुत लम्बा युद्ध चला। उनका शारीरिक पराक्रम अद्वितीय था। उन्होंने अपनी मुष्टि भरत पर उठाई। उस मुष्टि का प्रहार यदि वे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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