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________________ ठाणं (स्थान) ४६ १ इस कथानक में दोनों तथ्यों का प्रतिपादन है- १. पुण्डरीक राज्य करता रहा और अन्त में भाई कुण्डरीक के लिए राज्य का त्याग कर मुनि बन गया - वह ऐश्वर्य से उन्नत और संकल्प से भी उन्नत रहा। २. कुण्डरीक राज्य के लिए मुनि वेष का त्याग कर राजा बना - वह ऐश्वर्य ( श्रामण्य) से उन्नत होकर भी संकल्प से प्रणत था । स्थान ४ : टि० ६-१५ ऐश्वर्य से प्रणत और उन्नत संकल्प अब्राहम लिंकन अमेरिका के राष्ट्रपति थे । उनके पिता का नाम था टामस लिंकन । घर की आर्थिक स्थिति अत्यन्त कमजोर थी । यह घटना बचपन की है। पढ़ने का उन्हें बहुत शौक था। एक बार अपने अध्यापक एण्ड्र क्राफर्ड के पास वाशिंगटन की जीवनी थी। वे उसे पढ़ना चाहते थे । अपने अध्यापक के पास पहुंचे और अनुनय-विनय करने के बाद पुस्तक प्राप्त करने में सफल हुए। वे खुशी-खुशी अपने घर पहुंचे और लैम्प के प्रकाश में पुस्तक पढ़ने लगे। पुस्तक पढ़ने में इतने लीन हो गये कि समय का कुछ पता नहीं लगा। पिता ने कई बार सोने के लिए कहा, किन्तु उन्होंने उस पर ध्यान नहीं दिया । आखिर जब फिर पिता ने डांटा तो पुस्तक को झरोखे में रख लैम्प बुझाकर लेट गये। नींद आ गई। सुबह उठकर पुस्तक को देखा तो वह बरसात के कारण पानी से कुछ खराब हो गई थी। बड़े घबराये । अध्यापक के सामने एक अपराधी की तरह खड़े हुए। अध्यापक ने कहा - इसीलिए मैं किसी को पुस्तक देना नहीं चाहता। उसके सुरक्षित पहुँचने में मुझे संदेह रहता है । अब इसका दण्ड भरना होगा ।' अत्राहम ने कहा- 'मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है।' अध्यापक बोले'तीन दिन मेरे खेत में काम करो, फिर यह पुस्तक तुम्हारी हो जायेगी।' तीन दिन कड़ा परिश्रम किया। अध्यापक के सामने हाजिर हुए तो बहुत प्रसन्न थे । अब किताब उन्हें मिल गई। घर पर आए तो बहिन से कहा- 'तीन दिन काम करना पड़ा तो क्या ? पुस्तक मेरी बन गई। अब इसे पढ़कर मैं भी ऐसा ही बनने का प्रयत्न करूँगा ।' लिंकन ऐश्वर्य से प्रणत थे, किन्तु संकल्प से उन्नत । ऐश्वर्य से प्रणत और प्रणत संकल्प दो पड़ोसी थे । एक ईर्ष्यालु और दूसरा मत्सरी था। दोनों लोभी थे। एक बार धन प्राप्ति के लिए दोनों ने देवी के मंदिर में तपस्या प्रारम्भ की। दिन बीत गये। कुछ दिनों के बाद देवी प्रसन्न हुई और बोली- 'बोलो ! क्या चाहते हो ? जो पहले मांगेगा, दूसरे को उससे दुगुना दूंगी।' दोनों ने यह सुना तो लोभ का समुद्र दोनों के मन में उद्वेलित हो उठा। दोनों सोचने लगे कि पहले कौन मांगे ? वह सोचता है यह मांगे और दूसरा सोचता है वह मांगे, जिससे मुझे दुगुना मिले। दोनों एक दूसरे की ओर देखते रहे किन्तु पहल किसीने नहीं की । दोनों का मन दूषित था। ईर्ष्यालु ने सोचा-धन आदि मांगने से तो इसे दुगुना मिलेगा। इससे अच्छा हो, मैं क्यों नहीं देवी से यह प्रार्थना करूँ कि मेरी एक आंख फोड़ दे, इसकी दोनों फूट जाएगी। उसने वही कहा । देवी बोली'तथास्तु !' एक की एक आंख फूटी और दूसरे की दोनों । इस प्रकार वे ऐश्वर्य और संकल्प दोनों से प्रणत थे । Jain Education International ऐश्वर्य से उन्नत और प्रज्ञा से उन्नत थावरचापुत्र महल की ऊपरी मंजिल में मां के पास बैठा था। वहां उसके कानों में मधुर ध्वनि आ रही थी। मां से पूछा- 'ये गीत बड़े मधुर हैं, मेरा मन पुनः पुनः सुनने को करता है। ये कहां से आ रहे हैं और क्यों आ रहे हैं ?' मां ने जिज्ञासा को समाहित करते हुए कहा-पुत्र ! अपने पड़ोसी के घर पुत्र उत्पन्न हुआ है। ये गीत पुत्र प्राप्ति की खुशी में गाये जा रहे हैं और वहीं से आ रहे हैं।' पुत्र का मन अन्य जिज्ञासा से भर गया। वह बोला- 'मां क्या मैं जन्मा था तब भी गाये गये थे ?' मां ने स्वीकृति की भाषा में कहा- हां, गाये गये थे।' इस प्रकार वार्तालाप चल ही रहा था कि इतने में गीतों का स्वर बदल गया । जो स्वर कानों को प्रिय था वही अब कांटों की तरह चुभने लगा । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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