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________________ ठाणं (स्थान) ४८८ स्थान ४ : टि०६-८ उपभोग करूं। उसने वैसा ही किया । शस्त्र और विष प्रयोग से अपनी बारह सौतों को मार दिया। उसकी क्रूरता इतने से संतुष्ट नहीं हुई । अब वह मांस, मदिरा आदि का भी भक्षण कर उन्मत्त रहने लगी। एक बार नगर में कुछ दिनों के लिए 'जीव-हिंसा निषेध' की घोषणा होने पर वह अपने पीहर से प्रति दिन दो बछड़ों का मांस मँगाकर खाने लगी। महाशतक श्रमणोपासक एक दिन धर्म-जागरण में व्यस्त था। उस समय रेवती काम-विह्वल हो वहां पहुंची और विविध प्रकार के हाव-भाव प्रदर्शित कर भोगों की प्रार्थना करने लगी। उसकी इस प्रकार की अभद्र उन्मत्तता को देखकर महाशतक ने कहा—'आज से सात दिन तू 'विषूचिका' रोग से आक्रान्त होकर प्रथम नरक में उत्पन्न होगी।' यह सुनकर वह अत्यन्त भयभीत हुई। ठीक सातवें दिन उसकी मृत्यु हो गई। देखें-उपासकदशा, अ०८ । उन्नत और प्रणत रूप रोम के एक चित्रकार ने सुंदर और भव्य व्यक्ति का चित्र बनाने का संकल्प किया। एक बार उसे एक छोटा लड़का मिल गया। वह अत्यन्त सुंदर था। उसका मन प्रसन्नता से भर गया। उसने चित्र तैयार किया। वह चित्र उसकी भावना के अनुरूप बना । सर्वत्र उसकी प्रशंसा होने लगी। एक दिन उसके मन में पहले चित्र से विपरीत चित्र बनाने की भावना जगी। उसने वैसा ही व्यक्ति खोज निकाला, जिसके चेहरे से स्वार्थपरता, क्रूरता और कुरूपता झलकती थी। उसका चित्र भी उसने तैयार किया। एक बार वह चित्रकार दोनों चित्रों को लेकर जा रहा था। एक व्यक्ति ने उन्हें देखा और वह जोर से रोने लगा। चित्रकार ने पूछा-'तुम क्यों रोते हो?' वह बोला-'ये दोनों मेरे चित्र हैं।' चित्रकार ने पूछा---'दोनों में इतना अन्तर क्यों?' वह बोला--पहला चित्र मेरी जवानी का और दूसरा चित्र बुढ़ापे का है। मैंने अपनी जवानी व्यसनों में पूरी कर दी। उन व्यसनों से क्रूरता और कूरूपता पैदा हुई। वह प्रारम्भ में उन्नत और अन्त में प्रणत रूप वाला हो गया। प्रणत और उन्नत रूप यह उस समय की घटना है जब गुजरात में महाराजा सिद्धराज राज्य करते थे। एक बार मध्यप्रदेश की 'ओड' जाति अकाल से ग्रस्त होकर अपनी आजीविका के लिए गुजरात पहुंची। राजा सिद्धराज ने 'सहस्रलिंग' तालाब खुदाने का निर्णय इसलिए किया कि प्रजा को राहत-कार्य मिल जाये। ओड जाति में टीकम नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी व बच्चों को लेकर वहां चला आया। उसकी पत्नी का नाम जसमा था। जसमा बड़ी विचक्षण और वीर नारी थी। विचक्षणता और वीरता के साथ वह अत्यन्त सुन्दर भी थी। रूप प्रायः अभिशाप सिद्ध होता है। जसमा के लिए भी यही हुआ। उसका पति और उसके साथी मिट्टी खोदते और स्त्रियां उस मिट्टी को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोती थीं। राजा सिद्धराज की दृष्टि जसमा पर पड़ी। उसने उसे अपने महलों में आने के लिए अनेक प्रलोभन दिए, किन्तु जसमा का हृदय विचलित नहीं हुआ। उसने इस कुचक्र की जानकारी अपने पति को दी और कहा कि अब हमें यहां नहीं रहना चाहिए। बहुत से लोग वहां से इनके साथ चल पड़े। राजा को यह माल म हुआ तो वह स्वयं घोड़े पर बैठ अपने सैनिकों को साथ ले चल पड़ा। निकट पहुंच कर राजा ने कहा--'जसमा को छोड़ दो, और सब चले जाओ। टीकम ने कहा-ऐसा नहीं हो सकता।' बहुत से लोग उसमें मारे गए, टीकम भी मारा गया। पति के मरने पर जसमा के जीवन का कोई मूल्य नहीं रहा। उसने हाथ में कटार लेकर अपने पेट में भोंकते हुए कहा-'यह मेरा हाड़-मांस का शरीर है। दुष्ट ! तू इसे ले और अपनी भूख शांत कर।' जसमा छोटी जाति में उत्पन्न थी, प्रणत थी। किन्तु, उसने अपना बलिदान देकर नारीत्व के उन्नत रूप को प्रस्तुत किया। यह थी उसकी प्रणत और उन्नत अवस्था। Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use Only
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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