________________
ठाणं (स्थान)
स्थान ४ : टि० ६-८
एक बार उस गांव में नट आए। उन्होंने नाटक शुरू किया। नाटक देखकर राजा की पुरानी स्मृति जागृत हो गई । उसने अपने पूर्व-जन्म के भाई का पता लगाया। वह साधु के वेष में था। राजा उनसे मिला। दोनों का आपस में बहुत बड़ा विचार-विमर्श चला । साधु ने कहा- 'भाई ! तुम पूर्व जन्म में मुनि थे, आज भोगों में आसक्त होकर भोगों की चर्चा करते हो । इन्हें छोड़ो और अनासक्त जीवन जीओ। यदि ऐसा नहीं कर सकते हो तो असद् कर्म मत करो। श्रेष्ठ कर्म करो: जिससे तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल हो ।'
ब्रह्मदत्त ने कहा- 'मैं जानता हूं, तुम्हारी हित- शिक्षा उचित है, किन्तु मैं निदान वश हूं। आर्य कर्म नहीं कर सकता ।' ब्रह्मदत्त नहीं माना। साधु चला गया। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त मर कर सातवें नरक में उत्पन्न हुआ ।
देखें उत्तराध्ययन, अध्ययन १३
४८७
प्रणत और उन्नत
गंगा नदी के तट पर 'हरिकेश' का अधिपति वलको नामक चाण्डाल रहता था । उसकी पत्नी का नाम गौरी था । उसके गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम बल रखा । वही बल आगे चलकर 'हरिकेश बल' नाम से प्रसिद्ध हुआ । वह काला और विरूप था। अपनी जाति में और अपने साथियों में नटखट होने के कारण उसे सर्वत्र तिरस्कार ही मिला करता था। वह जीवन से ऊब गया था ।
T
मुनि का योग मिला। उसकी भावना बदल गई। वह साधु बन गया । विविध प्रकार की तपस्याएं प्रारम्भ की। तपः प्रभाव से अनेक शक्तियां उत्पन्न हो गईं। वे लब्धि-सम्पन्न हो गये । देवता भी उनकी सेवा में रहने लगे। साधना के क्षेत्र में जाति का महत्त्व नहीं होता । भगवान् महावीर ने कहा है – 'यह तप का साक्षात् प्रभाव है, जाति का नहीं। चाण्डाल में उत्पन्न होकर भी हरिकेश मुनि अनेक गुणों से युक्त होकर जन-वन्ध हुए।' उनके ऐहिक और पारलौकिक दोनों जीवन प्रशस्त हो गये ।
देखें - उत्तराध्ययन, अध्ययन १२ ।
प्रणत और प्रणत
राजगृह नगर में काल सौकरिक नामक कषायी रहता था। वह प्रतिदिन ५०० भैंसे मारता था । प्रतिदिन के अभ्यास के कारण उसका यह दृढ़ संकल्प भी बन गया था।
एक बार राजा श्रेणिक ने उसे एक दिन के लिए हिंसा छोड़ने को कहा। जब उसने स्वीकार नहीं किया तो बलात् हिंसा छुड़ाने के लिए उसे कुएं में डाल दिया, क्योंकि भगवान् महावीर ने राजा श्रेणिक को पहली नरक में नहीं जाने का कारण यह भी बताया था कि यदि सौकरिक एक दिन की हिंसा छोड़ दे तो तुम्हारा नर्क गमन रुक सकता है। सुबह निकाला गया तो उसके चेहरे पर वही प्रसन्नता थी जो प्रसन्नता हमेशा रहती थी। प्रसन्नता का कारण और कुछ नहीं था, संकल्प कान्विति ही थी ।
राजा ने जिज्ञासा की - 'आज तुमने भैंसे कैसे मारे ?'
उत्तर में वह बोला-'मैंने शरीर मैल के कृत्रिम भैंसे बनाकर उनको मारा है।' राजा अवाक् रह गया । काल सौकारिक यातना से परिपूर्ण अपनी अन्तिम जीवन लीला समाप्त कर सप्तम नरक में नैरयिक बना।
उन्नत और प्रणत परिणत
राजगृह नगर था । महाशतक नाम का धनाढ्य व्यक्ति वहां रहता था । उसके रेवती आदि १३ पत्नियां थीं । रेवती के विवाहोपलक्ष में उसके पिता से उसे करोड़ हिरण्य और दस हजार गायों का एक व्रज मिला था । महाशतक के साथ वह आनन्दपूर्वक जीवन बिता रही थी। प्रारम्भ में उसके विचार बहुत अच्छे थे। एक दिन उसके मन में विचार हुआ कि कितना अच्छा हो, इन सब १२ सपत्नियों को मार कर इनकी सम्पत्ति लेकर पति के साथ एकाकी काम-क्रीड़ा का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org