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________________ ठाणं (स्थान) ४८२ स्थान ४ : सूत्र ६५४-६६२ णक्खत्त-पदं नक्षत्र-पदम नक्षत्र-पद ६५४. अणुराहाणक्खत्ते चउत्तारे पण्णत्ते। अनुराधानक्षत्रं चतुष्तारं प्रज्ञप्तम्। ६५४. अनुराधा नक्षत्र के चार तारे हैं। ६५५. पुव्वासाढाणक्खत्ते चउत्तारे पूर्वाषाढानक्षत्रं चतुष्तारं प्रज्ञप्तम्। ६५५. पूर्वाषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं। पण्णत्ते । ६५६. उत्तरासाढाणक्खत्ते चउत्तारे उत्तराषाढानक्षत्रं चतुष्तारं प्रज्ञप्तम्। ६५६. उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं। पण्णत्ते। पावकम्म-पदं पापकर्म-पदम् पापकर्म-पद ६५७. जीवाणं चउट्ठाणणिब्वत्तिते पोग्गले जीवाः चतुःस्थाननिर्वतितान् पुद्गलान् ६५७. जीवों ने चार स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति पापकर्मतया अचैषुः वा चिन्वन्ति वा को पाप कर्म के रूप में ग्रहण किया है, वा चिणिस्संति वाचेष्यन्ति वा ग्रहण करते हैं तथा ग्रहण करेंगेरइयणिव्वत्तिते, तिरिक्ख- नैरयिकनिर्वतितान्, तिर्यग्योनिक- १. नैरयिक निर्वतित, जोणियणिव्वत्तिते, मणुस्स- निर्वतितान्, मनुष्यनिर्वतितान्, २. तिर्यक्योनिक निर्वतित, णिव्वत्तिते, देवणिव्वत्तिते। देवनिर्वतितान्। ३. मनुष्य निर्वतित, ४. देव निर्वतित । ६५८. एवं—उवचिणिसु वा उवचिणंति एवम्—उपाचेषुः वा उपचिन्वन्ति वा ६५८. इसी प्रकार जीवों ने चतुःस्थान निर्वतित वा उवचिणिस्संति वा। उपचेष्यन्ति वा। पुद्गलों का उपचय, बंध, उदीरण, वेदन एवं—चिण-उवचिण-बंध एवम्-चय-उपचय-बन्ध तथा निर्जरण किया है, करते हैं और उदीर-वेय तह णिज्जरा चेव । उदीर-वेदाः तथा निर्जरा चैव । करेंगे। पोग्गल-पदं पुद्गल-पदम् पुद्गल पद ६५६. चउपदेसिया खंधा अणंता पण्णत्ता। चतुःप्रदेशिकाः स्कन्धाः अनन्ताः, प्रज्ञप्ताः । ६५६. चतुःप्रादेशिक स्कंध अनन्त हैं। ६६०. चउपदेसोगाढा पोग्गला अणंता चतुः प्रदेशावगाढाः पुद्गलाः अनन्ताः ६६०. चतुःप्रदेशावगाढ पुद्गल अनन्त हैं। पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः । ६६१. चउसमयद्वितीया पोग्गला अणंता चतःसमयस्थितिकाः पूदगलाः अनन्ताः ६६१. चार समय की स्थिति वाले पुद्गल पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः । अनन्त हैं। ६६२. चउगुणकालगा पोग्गला अणंता चतुर्गुणकालकाः पुद्गला अनन्ताः यावत् ६६२. चार गुण काले पुद्गल अनन्त हैं। इसी जाव चउगुणलुक्खापोग्गला अणंता क्षाः पुद्गलाः अनन्ताः प्रकार सभी वर्ण, गंध, रस तथा पण्णत्ता। प्रज्ञप्ताः । स्पर्शों के चार गुण वाले पुद्गल अनन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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