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ठाणं (स्थान)
४८ १
समुद्द-पदं
समुद्र-पदम्
समुद्र - पद
६५२. चत्तारि समुद्दा पत्तेयरसा पण्णत्ता, चत्वारः समुद्राः प्रत्येकरसाः प्रज्ञप्ताः, ६५२. चार समुद्र प्रत्येक रस -- एक दूसरे से तं जहा - तद्यथा—
भिन्न रस वाले होते हैं
लवणोदे, वरुणोदे, खीरोदे, घतोदे । लवणोदकः, वरुणोदः, क्षीरोदकः,
घृतोदकः ।
१. लवणोदक - नमक- रस के समान खारे पानी वाला, २ . वरुणोदक - सुरा-रस के समान पानी वाला, ३. क्षीरोदक - दूधरस के समान पानी वाला, ४. घृतोदकघृत रस के समान पानी वाला ।
कसाय-पदं
कषाय-पदम्
६५३. चत्तारि आवत्ता पण्णत्ता, तं चत्वारः आवर्त्ताः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाजहा
खरावत्ते उष्णतावत्ते, गूढावत्ते, खरावर्त्तः, उन्नतावर्त्तः, गूढावर्त्तः, आमिसावत्ते । आमिषावर्त्तः ।
एवामेव चत्तारि कसाया पण्णत्ता, एवमेव चत्वारः कषायाः प्रज्ञप्ताः, जहा -- तद्यथा-
खरावत्तसमाणे कोहे, उष्णतावत्तसमाणे माणे, गूढवत्तसमाणे माया, आमिसावत्तसमाणे लोभे । खरावत्तसमाणं कोहं अणुपविट्ट जीवे कालं करेति णेरइएस उववज्जति ।
● उष्णतावत्तसमाणं माणं अणुपट्टे जीवे कालं करेति, रइएसु उववज्जति । गूढावत्तसमाणं मायं अणुपविट्ठ े जीवे कालं करेति णेरइएसु उववज्जति ।
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खरावर्त्तसमानः क्रोधः, उन्नतावर्त्तसमानः मानः, गूढावर्त्तमानः माया, आमिषावर्त्तसमानः लोभः । खरावर्त्तसमानं क्रोधं अनुप्रविष्टः जीवः कालं करोति, नैरयिकेषु उपपद्यते ।
उन्नतावर्त्तसमानं मानं अनुप्रविष्टः जीवः कालं करोति, नैरयिकेषु उपपद्यते ।
गूढावर्त्तसमानां मायां अनुप्रविष्टः जीवः कालं करोति, नैरयिकेषु उपपद्यते ।
आमिसावत्तसमा लोभमणुपविट्ठ े आमिषावर्त्तसमानं लोभं अनुप्रविष्टः जीवे कालं करेति णेरइएस जीवः कालं करोति, नैरयिकेषु उपपद्यते । उववज्जति ।
स्थान ४ : सूत्र ६५२-६५३
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कषाय-पद
६५३. आवर्त चार प्रकार के होते हैं
१. खरावर्त - भंवर, २. उन्नतावर्त --- पर्वत शिखर पर चढ़ने का मार्ग या वातूल, ३. गूढावर्त --- गेंद की गुंथाई या वनस्पतियों के अन्दर होने वाली गांठ, ४. आमिषावर्त-मांस के लिए शकुनिका आदि का आकाश में चक्कर काटना । इसी प्रकार कषाय भी चार प्रकार के होते हैं - १. क्रोध -खरावर्त के समान, २. मान – उन्नतावर्त के समान, ३. माया - गूढावर्त के समान, ४. लोभ आमिषावर्त के समान । खरावर्त के समान क्रोध में वर्तमान जीव मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
उन्नावर्त के समान मान में वर्तमान जीव मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है।
गूढावर्त के समान माया में वर्तमान जीव मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
आमिषावर्त के समान लोभ में वर्तमान जीव मरकर नैरयिकों में उत्पन्न होता है ।
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