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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ६४२-६४५ ६४२. चत्तारि मणुस्सीगन्ना पण्णत्ता, चत्वारः मानुषीगर्भाः प्रज्ञप्ताः, ६४२. स्त्रियों के गर्भ चार प्रकार के होते हैंतं जहातद्यथा
१. स्त्री के रूप में, २. पुरुष के रूप में, इत्थित्ताए, पुरिसत्ताए, णपुंसगत्ताते, स्त्रीतया, पुरुषतया, नपुंसकतया, । ३. नपुंसक के रूप में, ४. बिम्ब के रूप बिबत्ताए। बिम्बतया।
में विभिन्न विचित्र आकृति के रूप में।
संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा
संग्रहणी-गाथा १. अप्पं सुक्कं बहु ओयं, १. अल्पं शुक्र बहु ओजः,
शुक्र अल्प होता है और ओज अधिक
होता है तब स्त्री पैदा होती है। इत्थी तत्थ पजायति। स्त्री तत्र प्रजायते ।
ओज अल्प होता है और शुक्र अधिक अप्पं ओयं बहु सुक्क, अल्पं ओजः बहु शुक्र,
होता है तब पुरुष पैदा होता है। पुरिसो तत्थ जायति ॥ पुरुषस्तत्र जायते।
रक्त और शुक्र दोनों समान होते हैं तब २. दोण्हंपि रत्तसुक्काणं, २. द्वयोरपि रक्तशुक्रयोः,
नपुंसक पैदा होता है। तुल्लभावे णपुंसओ। तुल्यभावे नपुसकः।
वायु-विकार के कारण स्त्री के ओज के इत्थी-ओय-समायोगे, स्त्र्योजः समायोगे,
समायुक्त हो जाने से --जम जाने से बिंब बिबं तत्थ पजायति ॥ बिम्बं तत्र प्रजायते ॥
होता है। पुत्ववत्थु-पदं पूर्ववस्तु-पदम्
पूर्ववस्तु-पद ६४३. उप्पायपुव्वस्स णं चत्तारि चूलवत्थू उत्पादपूर्वस्य चत्वारि चूलावस्तूनि ६४३. उत्पाद पूर्व [ चौदह पूर्व में पहले पूर्व] पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि ।
के चूला वस्तु चार हैं।
काव्य-पद
कव्व-पदं ६४४. चउन्विहे कव्वे पण्णत्ते, तं जहा
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चतर्गवति
काव्य-पदम्
नि काव्यानि तद्यथागद्यं, पद्यं, कथ्यं, गेयम्।
प्रज्ञप्तानि. ६४४. काव्य चार प्रकार के होते हैं--
१. गद्य, २. पद्य, ३. कथ्य, ४. गेय"।
गज्जे, पज्जे, कत्थे, गेए।
समुग्घात-पदं समुद्घात-पदम्
समुद्घात-पद ६४५. णेरइयाणं चत्तारि समुग्धाता नैरयिकाणां चत्वारः समुद्घाताः प्रज्ञप्ता, ६४५. नैरयिकों के चार प्रकार का समुद्घात पण्णत्ता, तं जहा- तद्यथा
होता है-- वेयणासमुग्धाते, कसायसमुग्धाते, वेदनासमुद्घातः, कषायसमुद्घातः, १. वेदना-समुद्घात, २. कषाय-समुद्घात, मारणंतियसमुग्धाते, वेउव्विय- मारणांतिकसमुद्घातः, वैक्रियसमुद्घातः। ३. मारणांतिक-समुद्धात -अन्त समय समुग्घाते।
[मृत्युकाल में प्रदेशों का बहिर्गमन, ४. वैक्रिय-समुद्घात।
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