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________________ ठाणं (स्थान) ४७८ स्थान ४ : सूत्र ६३७-६४१ ६३७. चउव्विहे अभिणए पण्णत्ते, तं चतुर्विधः अभिनयः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-- ६३७. अभिनय चार प्रकार का होता हैजहा १. दाष्टान्तिक, २. प्रातिश्रुत, विट्ठतिए, पाउिसुते, सामण्णओ- दार्टान्तिकः, प्रातिश्रुतः, सामान्यतो- ३. सामान्यतोविनिपातिक, विणिवाइयं, लोगमज्झावसिते। विनिपातिकः, लोकमध्यावसितः । ४. लोकमध्यावसित। विमाण-पदं विमान-पदम् विमान-पद ३८. सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु सनत्कुमार-माहेन्द्रेषु कल्पेषु विमानानि ६३८. सनत्कुमार और माहेन्द्र देवलोक में विमाणा चउवण्णा पण्णत्ता, तं चतुर्वर्णानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा विमान चार वर्गों के होते हैंजहा नीलानि, लोहितानि, हारिद्राणि, १. नील वर्ण के, २. लोहित वर्ण के, णीला, लोहिता, हालिद्दा, शुक्लानि । ३. हारिद्र वर्ण के, ४. शुक्ल वर्ण के। सुकिल्ला। देव-पदं देव-पदम् देव-पद ६३६. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु महाशुक्र-सहस्रारेषु कल्पेसु देवानां भव- ६३६. महाशुक्र तथा सहस्रार देवलोक में देव देवाणं भवधारणिज्जा सरीरगा धारणीयानि शरीरकाणि उत्कृष्टेन ताओं का भवधारणीय शरीर ऊंचाई में उक्कोसेणं चत्तारि रयणीओ चतस्रः रत्नीः ऊवं उच्चत्वेन उत्कृष्टतः चार रत्नि के होते हैं। उच्चत्तणं पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि। गब्भ-पदं गर्भ-पदम् गर्भ-पद ६४०. चत्तारि दगगब्भा पण्णत्ता, तं चत्वारः दकगर्भाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ६४०. उदक के चार गर्भ होते हैं--- जहा १. ओस, २. मिहिका-कुहासा, उस्सा, महिया, सीता, उसिणा। अवश्यायाः, महिकाः, शीताः, उष्णाः। ३. अतिशीत, ४. अतिउष्ण । ६४१. चत्तारि दगगब्भा पण्णत्ता, तं चत्वारः दकगर्भाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ६४१. उदक के चार गर्भ होते हैंजहा १. हिमपात, २. अभ्रसंस्तृत-आकाश का हेमगा, अन्भसंथडा, सीतोसिणा, हैमकाः, अभ्रसंस्तृताः, शीतोष्णा:, बादलों से ढंका रहना, ३. अतिशीतोष्ण, पंचरूविया। पञ्चरूपिकाः। ४. पंचरूपिका—गर्जन, विद्युत, जल, वात तथा बादलों के संयुक्त योग से। संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा संग्रहणी-गाथा १. माहे उ हेमगा गम्भा, १. माघे तु हैमका: गर्भाः, माघ में हिमपात से उदक गर्भ रहता है। फग्गुणे अन्भसंथडा। फाल्गुने अभ्रसंस्तृताः । फाल्गुन मे आकाश के बादलों से आच्छन्न होने से उदक गर्भ रहता है। सितोसिणा उ चित्ते, शीतोष्णास्तु चैत्रे, चत्र में अतिशीत तथा अतिउष्ण से उदक वइसाहे पंचरूविया॥ वैशाखे पंचरूपिकाः ॥ गर्भ रहता है। वैशाख में पंचरूपिका होने से उदक गर्भ रहता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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