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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४:सूत्र ६१२.६१४
मुत्त-अमुत्त-पदं मुक्त-अमुक्त-पदम्
मुक्त-अमुक्त-पद ६१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ६१२. पुरुष चार प्रकार के होते हैं--- जहातद्यथा
१. कुछ पुरुष द्रव्य [वस्तु] से भी मुक्त मुत्ते णाममेगे मुत्ते, मुक्तः नामैक: मुक्तः,
होते हैं और भाव [वृत्ति से भी मुक्त मुत्ते णाममेगे अमुत्ते, मुक्त: नामकः अमुक्तः,
होते हैं, २. कुछ पुरुष द्रव्य से मुक्त होते अमुत्ते णाममेगे मुत्ते, अमुक्तः नामकः मुक्तः,
हैं, पर भाव से अमुक्त होते हैं, ३. कुछ अमुत्ते णाममेगे अमुत्ते। अमुक्तः नामकः अमुक्तः।
पुरुष द्रव्य से अमुक्त होते हैं, पर भाव से मुक्त होते हैं, ४. कुछ पुरुष द्रव्य से भी अमुक्त होते हैं और भाव से भी अमुक्त
होते हैं। ६१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ६१३. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा
१. कुछ पुरुष मुक्त होते हैं और उनका
व्यवहार भी मुक्तवत् होता है, २. कुछ मुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, मुक्तः नामैक: मुक्तरूपः,
पुरुष मुक्त होते हैं, पर उनका व्यवहार मुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे, मुक्त: नामकः अमुक्तरूपः,
अमुक्तवत् होता है, ३. कुछ पुरुष अमुक्त अमुत्ते णाममेगे मुत्तरूवे, अमुक्तः नामैकः मुक्तरूपः,
होते हैं, पर उनका व्यवहार मुक्तवत् अमुत्ते णाममेगे अमुत्तरूवे। अमुक्तः नामैक: अमुक्तरूपः ।
होता है, ४. कुछ पुरुष अमुक्त होते हैं और उनका व्यवहार भी अमुक्तवत् होता है।
गति-आगति-पदं गति-आगति-पदम्
गति-आगति-पद ६१४. पंचिदियतिरिक्खजोणिया चउगइया पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः चतर्गतिकाः ६१४. पंचेन्द्रियतिर्यक्योनिकों की चार स्थानों चआगइया पण्णत्ता, तं जहा- चतुरागतिकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
में गति तथा चार स्थानों में आगति हैपंचिदियतिरिक्खजोणिए पंचिदिय- पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः पञ्चेन्द्रिय
पंचेन्द्रियतिर्यकयोनिक जीव पंचेन्द्रियतिरिक्खजोणिएसु उवदज्जमाणे तिर्यग्योनिकेषु उपपद्यमानो नैरयिकेभ्यो
तिर्यक्योनि में उत्पन्न होता हुआ नैरणेरइएहितोवा, तिरिक्खजोणिए- वा, तिर्यग्योनिकेभ्यो वा, मनुष्येभ्यो वा,
यिकों, तिर्थक्योनिकों, मनूष्यों तथा देवों हितोवा, मणुस्सेहितोवा, देवेहितो देवेभ्यो वा उपपद्येत।
से आगति करता है, वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से पंचिदियतिरिवख- स चैव असौ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकः
पंचेन्द्रियतिर्थक्योनिक जीव पंचेन्द्रियजोणिए पंचिदियतिरिक्खजोणियत्तं पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकत्वं विप्रजहत्
तिर्थक्योनि को छोड़ता हुआ नरयिकों, विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, नैरयिकतया वा, तिर्यग्योनिकतया वा,
तिर्यक्योनिकों, मनुष्यों तथा देवों में 'तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मनुष्यतया वा, देवतया वा गच्छेत् ।
गति करता है। मणुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा।
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