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________________ ठाणं (स्थान) ४७४ स्थान ४ : सूत्र ६१५-६१७ ६१५. मणुस्सा चउगइआ चउआगइआ मनुष्याः चतुर्गतिकाः चतुरागतिकाः ६१५. मनुष्य चार स्थानों से गति तथा चार पण्णत्ता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा स्थानों से आगति करता है--- मणस्से मणस्सेसु उववज्जमाणे मनुष्यः मनुष्येष उपपद्यमानः नरयिकेभ्यो मनुष्य मनुष्य में उत्पन्न होता हुआ णेरइएहितो वा, तिरिक्खजोणिए- वा, तिर्यग्योनिकेभ्यो वा, मनुष्येभ्यो वा, नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों तथा हितोवा, मणस्सेहितोवा, देवेहितो देवेभ्यो वा उपपद्येत। देवों से आगति करता है, वा उववज्जेज्जा। से चेव णं से मणुस्से स चैव असौ मनुष्य: मनुष्यत्वं विप्र- मनुष्य, मनुष्यत्व को छोड़ता हुआ नैरमणुसत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए जहत् नैरयिकतया वा, तिर्यग्योनिकतया यिकों, तिर्यक्योनिकों, मनुष्यों तथा देवों वा, तिरिक्खजोणियत्ताए वा, वा, मनुष्यतया वा, देवतया वा गच्छेत् । में गति करता है। मणुस्सत्ताए वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा। til संजम-असंजम-पदं संयम-असंयम-पदम् संयम-असंयम-पद ६१६. बेईदियाणं जीवा असमारभ- द्वीन्द्रियान जीवान असमारभमाणस्य ६१६. द्वीन्द्रिय जीवों का आरम्भ नहीं करने माणस्स चउन्विहे संजमे कज्जति, चतुर्विधः संयमः क्रियते, तद्यथा वाले के चार प्रकार का संयम होता हैतं जहा १. रसमय सुख का वियोग नहीं करने से, जिन्भामयातो सोक्खातो अवव- जिह्वामयात् सौख्याद् अव्यपरोपयिता २. रसमय दुःख का संयोग नहीं करने से, रोविता भवति, जिब्भामएणं भवति, जिह्वामयेन दुःखेन असंयोजयिता । ३. स्पर्शमय सुख का वियोग नहीं करने दुखणं असंजोगेत्ता भवति, फासा- भवति, स्पर्शमयात् सौख्याद् अव्यपरोप से, ४. स्पर्शमय दुःख का संयोग नहीं मयातो सोक्खातो अववरोवेत्ता यिता भवति, स्पर्शमयेन दुःखेन असंयोज करने से। भवति, फासामएणं दुक्षेणं यिता भवति। असंजोगिता भवति। ६१७. बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स द्वीन्द्रियान् जीवान् समारभमाणस्य ६१७. द्वीन्द्रिय जीवों का आरम्भ करने वाले के चिउविधे असंजमे कज्जति, तं चतविधः असंयमः क्रियते, तद्यथा- चार प्रकार का असंयम होता हैजहाजिन्भामयातो सोक्खातो जिह्वामयात् सौख्याद् व्यपरोपयिता १. रसमय सुख का वियोग करने से, ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं भवति, जिह्वामयेन दुःखेन संयोजयिता २. रसमय दुःख का संयोग करने से, दुक्खणं संजोगित्ता भवति, फासा- भवति,स्पर्शमयात् सौख्याद् व्यपरोपयिता ३. स्पर्शमय सुख का वियोग करने से, मयातो सोक्खाओ ववरोवेत्ता भवति, स्पर्शमयेन दुःखेन संयोजयिता ४. स्पर्शमय दुःख का संयोग करने से। भवति , 'फासामएणं दुक्खेणं भवति । संजोगित्ता भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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