SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 513
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ४७२ स्थान ४: सूत्र ६१०-६११ अथवासब जीव चार प्रकार के होते हैं१. स्त्रीवेदक, २. पुरुषवेदक, ३. नपुंसकवेदक, ४. अबेदक । अथवासब जीव चार प्रकार के होते हैं-- अहवा अथवाचउब्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं चतुर्विधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथाजहाइत्थिवेयगा, पुरिसवेयगा, स्त्रीवेदकाः, पुरुषवेदकाः, नपुंसकवेदकाः, णपुंसकवेयगा, अवेयगा। अवेदकाः । अहवा अथवाचउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं चतुर्विधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, जहा तद्यथाचक्खुदंसणी, अचक्खुदसणी, चक्षुर्दर्शनिनः, अचक्षुर्दर्शनिनः, ओहिदसणी, केवलदसणी। अवधिदर्शनिनः, केवलदर्शनिनः । अहवा अथवाचउन्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं चतुर्विधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, जहा तद्यथासंजया, असंजया, संजयासंजया, संयताः, असंयताः, संयताऽसंयताः, गोसंजया णोअसंजया। नोसंयता: नोअसंयताः। १. चक्षुदर्शनी, २. अचक्षुदर्शनी, ३. अवधिदर्शनी, ४. केवलदर्शनी। अथवा-- सब जीव चार प्रकार के होते हैं संयत, असंयत, संयतासंयत, न संयत और न असंयत। मित्त-अमित्त-पदं मित्र-अमित्र-पदम् मित्र-अमित्र-पद ६१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ६१०. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष व्यवहार से भी मित्र होते और मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्रं नामैक मित्रं, हृदय से भी मित्र होते हैं, २. कुछ पुरुष मित्ते णाममेगे अमित्ते, मित्रं नामैक अमित्रं, व्यवहार से मित्र होते हैं, किन्तु हृदय से अमित्त णाममेगे मित्ते, अमित्रं नामक मित्र, मित्र नहीं होते, ३. कुछ पुरुष व्यवहार से अमित्ते णाममेगे अमित्ते। अमित्रं नामैकं अमित्रम् । मित्र नहीं होते, पर हृदय से मित्र होते हैं, ४. कुछ पुरुष न व्यवहार से मित्र होते हैं और न हृदय से मित्र होते हैं। ६११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ६११. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहा १. कुछ पुरुष मित्र होते हैं और उनका मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, मित्रं नामैक मित्ररूपं, उपचार भी मित्रवत् होता है, २. कुछ 'मित्ते णाममेगे अमित्तरूवे, मित्रं नामकं अमित्ररूपं, पुरुष मित्र होते हैं, पर उनका उपचार अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्रं नामैक मित्ररूपं, अमित्रवत् होता है, ३. कुछ पुरुष अमित्र अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे । अमित्रं नामक अमित्ररूपम् । होते हैं, पर उनका उपचार मित्रवत् होता है, ४. कुछ पुरुष अमित्र होते हैं और उनका उपचार भी अमित्रवत् होता है। तदयथा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy