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________________ अर्थ (स्थान ठाणं (स्थान) ४७१ स्थान ४ : सूत्र ६०५-६०६ संघ-पदं संघ-पदम् संघ-पद ६०५. चउविहे संघे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः संघः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ६०५. संघ चार प्रकार का होता है समणा, समणीओ, सावगा, श्रमणाः, श्रमण्यः, श्रावकाः, श्राविकाः। १. श्रमण, २. श्रमणी, ३. श्रावक, सावियाओ। ४. श्राविका। बुद्धि-पदं बुद्धि-पदम् ६०६. चउन्विहा बुद्धी पण्णता, तं जहा- चतुर्विधा बुद्धिः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- उप्पत्तिया, वेणइया, कम्मिया, औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी, परिणामिया। पारिणामिकी। बुद्धि-पद ६०६. बुद्धि चार प्रकार की होती है -- १. औत्पत्तिकी-सहज बुद्धि, २. वैनयिकी-गुरुशुश्रूषा से उत्पन्न बुद्धि, ३. कामिकी-कार्य करते-करते बढ़ने वाली बुद्धि, ४. पारिणामिकी आयु बढ़ने के साथ-साथ विकसित होने वाली बुद्धि३५ । मइ-पदं मति-पदम् मति-पद ६०७. चउन्विहा मई पण्णत्ता, तं जहा- चतुविधा मतिः प्रज्ञप्ताः , तदयथा- ६०७. मति चार प्रकार की होती है.-- उग्गहमती, ईहामती, अवायमती, अवग्रहमतिः, ईहामतिः, अवायमतिः, १. अवग्रहमति, २. ईहामति, धारणामती। धारणामतिः। ३. अवायमति, ४. धारणामति । अहवाअथवा अथवाचउविवहा मती पण्णत्ता, तं जहा- चतुर्विधा मतिः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- मति चार प्रकार की होती हैअरंजरोदगसमाणा, वियरोदग- अरञ्जरोदकसमाना, विदरोदकसमाना, १. घड़े के पानी के समान-अत्यल्प, समाणा, सरोदगसमाणा, सागरो- सरउदकसमाना, सागरोदकसमाना। २. गढ़े के पानी के समान अल्प, ३. तालाब के पानी के समान---बहुतर, दगसमाणा। ४. समुद्र के पानी के समान—अपरिमेय । जीव-पदं जीव-पदम् जीव-पद ६०८. चउन्विहा संसारसमावण्णगा चतुर्विधाः संसारसमापन्नकाः जीवाः ६०८. संसारी जीव चार प्रकार के होते हैंजीवा पण्णत्ता, तं जहाप्रज्ञप्ताः, तद्यथा १.नरयिक, २.तिर्यक्योनिक, णेरइया, तिरिक्खजोणिया, नैरयिकाः, तिर्यग्योनिकाः, मनुष्याः, ३. मनुष्य, ४. देव। मणुस्सा, देवा। देवाः । ६०६. चउव्विहा सव्वजीवा पण्णता, तं चतुर्विधाः सर्वजीवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-६०६. संसारी जीव चार प्रकार के होते हैं जहामणजोगी, वइजोगी, कायजोगी, मनोयोगिनः, वाग्योगिनः, काययोगिनः, १. मनोयोगी, २. वचोयोगी अजोगी। अयोगिनः । ३. काययोगी, ४. अयोगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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