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________________ ठाणं (स्थान) ६०१. आयसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहा- घट्टणता, पवडणता, थंभणता, लेसणता। ४७० स्थान ४ : सूत्र ६०१-६०४ आत्मसंचेतनीयाः उपसर्गाः चतुर्विधाः ६०१. अपने द्वारा होने वाले उपसर्ग चार प्रकार प्रज्ञप्ताः, तद्यथा के होते हैंघट्टनया, प्रपतनया, स्तम्भनया, १. संघर्ष जनित--जैसे आंख में रजः कण श्लेषणया। गिर जाने पर उसे मलने से होने वाला कष्ट, २. प्रपतनजनित--गिरने से होने वाला कष्ट, ३. स्तम्भनता-रुधिर-गति के रुक जाने पर होने वाला कष्ट, ४. श्लेषणता पर आदि संधि-स्थलों के जुड़ जाने से होने वाला कष्ट। कम्म-पदं कर्म-पदम् ६०२. चउन्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधं कर्म प्रज्ञप्तम्, तद्यथा सुभे णाममेगे सुभे, शुभं नामैकं शुभं, सुभे णाममेगे असुभे, शुभं नामकं अशुभं, असुभे णाममेगे सुभे, अशुभं नामैकं शुभं, असुभे णाममेगे असुभे। अशुभं नामक अशुभम् । कर्म-पद ६०२. कर्म चार प्रकार के होते हैं १. कुछ कर्म शुभ-पुण्य प्रकृति वाले होते हैं और उनका अनुबन्ध भी शुभ होता है, २. कुछ कर्म शुभ होते हैं, पर उनका अनुबन्ध अशुभ होता है ३. कुछ कर्म अशुभ होते हैं, पर उनका अनुबन्ध शुभ होता है, ४. कुछ कर्म अशुभ होते हैं और उनका अनुबन्ध भी अशुभ होता ६०३. चउन्विहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा- चतुविधं कर्म प्रज्ञप्तम्, तद्यथा-- ६०३. कर्म चार प्रकार के होते हैं - सुभे णाममेगे सुभविवागे, शुभं नामैकं शुभविपाकं, १. कुछ कर्म शुभ होते हैं और उनका सुभे णाममेगे असुभविवागे, शुभं नामकं अशुभविपाकं, विपाक भी शुभ होता है, २. कुछ कर्म असुभे णाममेगे सुभविवागे, अशुभं नामैकं शुभविपाकं, शुभ होते हैं पर उनका विपाक अशुभ असुभे णाममेगे असुभविवागे। अशुभं नामैकं अशुभविपाकम् । होता है, ३. कुछ कर्म अशुभ होते हैं, पर उनका विपाक शुभ होता है, ४. कुछ कर्म अशुभ होते हैं और उनका विपाक भी अशुभ होता है। ६०४. चउविहे कम्मे पण्णत्ते, तं जहा म प्रज्ञप्तम, तद्यथा.. ६०४. कर्म चार प्रकार के होते हैंपगडीकम्मे, ठितीकम्मे, अणुभाव- प्रकृतिकर्म, स्थितिकर्म, अनुभावकर्म, १. प्रकृति-कर्म-कर्म पुद्गलों का स्वभाव, कम्मे, पदेसकम्मे । प्रदेशकर्म । २. स्थिति-कर्म-कर्म पुद्गलों की कालमर्यादा, ३. अनुभावकर्म--कर्म पुद्गलों का सामर्थ्य, ४. प्रदेशकर्म-कर्म पुद्गलों का संचय। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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