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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४: सूत्र ५६७-६०० २. हिययमपावमकलुसं, २. हृदयमपापमकलुषं,
(२) जिस पुरुष का हृदय निष्पाप और जोहाऽवि य कडुयभासिणी णिच्चं। जिह्वापि च कटुकभाषिणी नित्यं । अकलुष होता है, पर जिसकी जिह्वा कटुजम्मि पुरिसम्मि विज्जति, यस्मिन् पुरुषे विद्यते,
भाषिणी होती है वह पुरुष मधु-भृत और से मधुकुंभे विसपिहाणे ॥ स मधुकुम्भः विपिधानः ।
विष के ढक्कन वाले कुम्भ के समान होता है। ३. जं हिययं कलुसमयं, ३. यत् हृदयं कलुषमयं,
(३) जिस पुरुष का हृदय कलुषमय होता जीहाऽवि य मधुरभासिणी णिच्चं। जिह्वाऽपि च मधुरभाषिणी नित्यं । है, पर जिह्वा मधुर-भाषिणी होती है वह जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, यस्मिन् पुरुषे विद्यते,
पुरुष विष-भृत और मधु के ढक्कन वाले से विसकुंभे महुपिहाणे ॥ स विषकुम्भः मधुपिधानः । कुम्भ के समान होता है। ४. जं हिययं कलुसमयं, ४. यत् हृदयं कलुषमयं,
(४) जिस पुरुष का हृदय कलुषमय होता जीहाऽविय कडुयभासिणी णिच्चं। जिह्वाऽपि च कटुकभाषिणी नित्यं । है और जिह्वा भी कटु-भाषिणी होती है जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, यस्मिन् पुरुषे विद्यते,
वह पुरुष विष-भृत और विष के ढक्कन से विसकुंभे विसपिहाणे॥ स विषकुम्भः विषपिधानः ।।
वाले कुम्भ के समान होता है। उवसग्ग-पदं उपसर्ग-पदम्
उपसर्ग-पद ५६७. चउबिहा उवसग्गा पण्णत्ता, तं चतुर्विधाः उपसर्गाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा--- ५६७. उपसर्ग चार प्रकार के होते हैंजहा
१. देवताओं से होने वाले,
२. मनुष्यों से होने वाले, दिव्वा, माणुसा, तिरिक्खजोणिया, दिव्याः मानुषाः, तिर्यग्योनिकाः,
३. तिर्यञ्चों से होने वाले, आयसंचयणिज्जा। आत्मसंचेतनीयाः।
४. स्वयं अपने द्वारा होने वाले ३२ ॥ ५६८. दिव्वा उवसग्गा चउव्विहा पण्णत्ता, दिव्याः उपसर्गाः चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, ५६८. देवताओं से होने वाले उपसर्ग चार प्रकार तं जहातद्यथा
के होते हैंहासा, पाओसा, वोमंसा, हासात्, प्रद्वेषात्, विमर्शात्,
१. हास्यजनित, २. प्रद्वेषजनित,
३. विमर्श-परीक्षा की दृष्टि से किया पृथग्विमात्राः।
जाने वाला, ४. पृथविमात्रा-उक्त
तीनों का मिश्रित रूप। ५६६. माणुसा उवसग्गा चउठिवहा मानुषाः उपसर्गाः चतुर्विधाः प्रज्ञप्ताः, ५५९. मनुष्यों के द्वारा होने वाले उपसर्ग चार पण्णत्ता, तं जहातद्यथा
प्रकार के होते हैं--- हासा, पाओसा, वीमंसा, कुसील- हासात्, प्रद्वेषात्, विमर्शात्, कुशील
१. हास्यजनित, २. प्रद्वेषजनित, पडिसेवणया। प्रतिषेवणया।
३. विमर्शजनित, ४. कुशील --प्रतिसेवन
के लिए किया जाने वाला। ६००. तिरिक्खजोणिया उवसग्गा तिर्यग्योनिकाः उपसर्गाः चतुर्विधाः ६००. तिर्यञ्चों के द्वारा होने वाले उपसर्ग चार चउविवहा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
प्रकार के होते हैंभया, पदोसा, आहारहेडं, अवच्च- भयात् प्रद्वेषात्, आहारहेतोः, अपत्य- १. भयजनित, २. प्रद्वेषजनित, लेण-सारक्खणया। लयन-संरक्षणाय।
३. आहार के निमित्त से क्रिया जाने वाला, ४. अपने बच्चों के आवास-स्थानों की सुरक्षा के लिए किया जाने वाला।
पुढोवेमाता।
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