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नत्र
ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ५६५-५९६ चरित्त-पदं चरित्र-पदम्
चरित्र-पद ५६५. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः कुम्भाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५६५. कुंभ चार प्रकार के होते हैंभिण्णे, जज्जरिए, परिस्साई, भिन्नः, जर्जरितः, परिश्रावी, १. भिन्न--फूटे हुए, २. जर्जरित
पुराने, ३. परिश्रावी-झरने वाले, अपरिस्साई। अपरिश्रावी।
४. अपरिश्रावी नहीं झरने वाले, एवामेव चउविहे चरित्ते पण्णत्ते, एवमेव चतुर्विधं चरित्रं प्रज्ञप्तम्, । इसी प्रकार चरित्र भी चार प्रकार का तं जहातद्यथा
होता है—१. भिन्न--मूल प्रायश्चित्त के भिण्णे, 'जज्जरिए, परिस्साई , भिन्न, जर्जरितं, परिश्रावि, अपरिश्रावि। योग्य, २. जर्जरित–छेद प्रायश्चित्त के अपरिस्साई।
योग्य, ३. परिश्रावी-सूक्ष्म दोष वाला,
४. अपरिश्रावी-निर्दोष। महु-विस-पदं मधु-विष-पदम्
मधु-विष-पद ५६६. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः कुम्भाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५६६. कुंभ चार प्रकार के होते हैंमहुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, मधुकुम्भः नामैक: मधुपिधानः, १. कुछ कुंभ मधु से भरे हुए होते हैं और
उनके ढक्कन भी मधु का ही होता है, महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, मधुकुम्भः नामैक: विषपिधानः,
२. कुछ कुंभ मधु से भरे हुए होते हैं, पर विसकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, विषकुम्भः नामक: मधुपिधानः,
उनके ढक्कन विष का होता है, ३. कुछ विसकुंभे णाममेगे विसपिहाणे। विषकुम्भः नामैक: विषपिधानः ।
कुंभ विष से भरे हुए होते हैं, पर उनके ढक्कन मधु का होता हैं, ४. कुछ कुंभ विष से भरे हुए होते हैं और उनके ढक्कन भी
विष का होता है। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथामहुकुंभे णाममेगे महुपिहाणे, मधुकुम्भः नामैकः मधुपिधानः, १. कुछ पुरुषों का हृदय भी मधु से भरा
हुआ होता है और उनकी वाणी भी मधु महुकुंभे णाममेगे विसपिहाणे, मधुकुम्भः नामक: विषपिधानः,
से भरी हुई होती है, २. कुछ पुरुषों का विसकुंभे गाममेगे महुपिहाणे, विषकुम्भः नामैक: मधुपिधानः, हृदय मधु से भरा हुआ होता है, पर विसकुंभे णाममेगे विसपिहाणे। विषकुम्भः नामैक: विषपिधानः ।
उनकी वाणी विष से भरी हुई होती है, ३. कुछ पुरुषों का हृदय विष से भरा हुआ होता है, पर उनकी वाणी मधु से भरी हुई होती है, ४. कुछ पुरुषों का हृदय विष से भरा हुआ होता है और उनकी वाणी भी विष से भरी हुई होती
संगहणी-गाहा
संग्रहणी-गाथा १. हिययमपावमकलुसं, १. हृदयमपापमकलुषं, जीहाऽवि य महरभासिणी णिच्चं। जिह्वापि च मधुरभाषिणी नित्यं । जम्मि पुरिसम्मि विज्जति, यस्मिन् पुरुषे विद्यते, से मधुकुंभे मधुपिहाणे ॥ स मधुकुम्भः मधुपिधानः ॥
संग्रहणी-गाथा (१) जिस पुरुष का हृदय निष्पाप और अकलुष होता है तथा जिसकी जिह्वा भी मधुर भाषिणी होती है वह पुरुष मधु-भृत
और मधु के ढक्कन वाले कुम्भ के समान होता है।
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