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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ५६३-५६४
५६३. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः कुम्भाः प्रज्ञप्ताः , तद्यथा- ५६३. कुंभ चार प्रकार के होते हैंपुण्णेवि एगे पिय?, पूर्णोऽपि एकः प्रियार्थः,
१. कुछ कुंभ जल आदि से भी पूर्ण होते पुण्णेवि एगे अवदले, पूर्णोऽपि एक: अपदलः,
है और देखने में भी प्रिय लगते हैं, २. कुछ
कुंभ जल आदि से पूर्ण होते हैं, पर अपूर्ण तुच्छेवि एगे पियट्ट, तुच्छोऽपि एक: प्रियार्थः,
पक्व होने के कारण अपदल –असार तुच्छेवि एगे अवदले। तुच्छोऽपि एकः अपदलः ।
होते हैं, ३. कुछ कुंभ जल आदि से अपूर्ण होते हैं, पर देखने में प्रिय लगते हैं, ४. कुछ कुंभ जल आदि से भी अपूर्ण होते हैं और अपूर्ण पक्व होने के कारण अपदल
भी होते हैं। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि, प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथापुण्णेवि एगे पिय? पूर्णोऽपि एक: प्रियार्थः,
१. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी पूर्ण होते 'पुण्णेवि एगे अवदले, पूर्णोऽपि एकः अपदलः,
हैं और प्रियार्थ-परोपकारी होने के तुच्छेवि एगे पिय?, तुच्छोऽपि एक: प्रियार्थः,
कारण प्रिय भी होते हैं, २. कुछ पुरुष श्रुत
आदि से पूर्ण होते हैं, पर अपदलतुच्छेवि एगे अवदले। तुच्छोऽपि एक: अपदलः ।
परोपकार करने में अक्षम होते हैं, ३. कुछ पुरुष श्रुत आदि से अपूर्ण होते हैं, पर प्रियार्थ—परोपकार करने के कारण प्रिय होते हैं, ४. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी अपूर्ण होते हैं और अपदल--परोपकार
करने में भी अक्षम होते हैं। ५६४. चत्तारि कुंभा पण्णत्ता, तं जहा.- चत्वारः कुम्भाः प्रज्ञप्ता, तद्यथा- ५६४. कुंभ चार प्रकार के होते हैंपुण्णेवि एगे विस्संदति, पूर्णोऽपि एकः विष्यन्दते,
१. कुछ कुंभ जल से पूर्ण होते हैं और
झरते भी हैं, २. कुछ कुंभ जल से भी पूर्ण पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, पूर्णोऽपि एक: नो विष्यन्दते,
होते हैं और झरते भी नहीं, ३. कुछ कुंभ तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छोऽपि एकः विष्यन्दते,
जल से भी अपूर्ण होते हैं और झरते भी तुच्छेवि एगे णो विस्संदति।।
हैं, ४. कुछ कुंभ जल से अपूर्ण होते हैं, पर तुच्छोऽपि एकः नो विष्यन्दते ।
झरते नहीं। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथापुण्णेवि एगे विस्संदति, पूर्णोऽपि एक: विष्यन्दते,
१. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी पूर्ण होते 'पुण्णेवि एगे णो विस्संदति, पूर्णोऽपि एक: नो विष्यन्दते,
हैं और विष्यन्दी-उनका विनियोग तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छोऽपि एकः विष्यन्दते,
करने वाले भी होते हैं, २. कुछ पुरुष श्रुत तुच्छेवि एगे णो विस्संदति। तुच्छोऽपि एकः नो विष्यन्दते।
आदि से पूर्ण होते हैं, पर विष्यन्दी नहीं होते, ३. कुछ पुरुष श्रुत आदि से अपूर्ण होते हैं और विष्यन्दी होते हैं, ४. कुछ पुरुष श्रुत आदि से भी अपूर्ण होते हैं और विष्यन्दी भी नहीं होते।
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