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स्थान ४ : सूत्र ५८१-५८६
१. सत्त्वहीनता से, २. भय- वेदनीय कर्म के उदय से, ३. भय की बात सुनने से उत्पन्न मति से, ४. भय का सतत चितन करते रहने से ।
५८१. चह ठार्णोह मेहुणसण्णा समुप्प - चतुभिः स्थान: मैथुनसंज्ञा समुत्पद्यते, ५८१. चार कारणों से मैथुन- संज्ञा उत्पन्न होती
ज्जति, तं जहाचितमससोणिययाए, मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदणं, मतीए, तदट्ठोव
तद्यथा— चितमांसशोणिततया, मोहनीयस्य कर्मणः उदयेन, मत्या, तदर्थोपयोगेन ।
ओगेणं ।
ठाणं (स्थान)
होणसत्तताए, भयवेय णिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ।
१. अत्यधिक मांस- शोणित का उपचय हो जाने से, २. मोहनीय कर्म के उदय से मोहाणुओं की सक्रियता से, ३. मैथुन
की बात सुनने से उत्पन्न मति से,
४. मैथुन का सतत चिंतन करते रहने से ।
५८२. चउहि ठाणेह परिग्गहसण्णा चतुभिः स्थानैः परिग्रहसंज्ञा समुत्पद्यते, ५८२. चार कारणों से परिग्रह संज्ञा उत्पन्न होती
तद्यथा
समुपज्जति तं जहा अविमुत्तयाए, लोभवेय णिज्जस्स कम्मस्स उदएणं, मतीए, तदट्ठोवओगेणं ।
है - १. अविमुक्तता - परिग्रह पास में रहने से, २. लोभ-वेदनीय कर्म के उदय से, ३. परिग्रह को देखने से उत्पन्न मति से, ४. परिग्रह का सतत चिंतन करते रहने से ।
काम-पदं
५८३. चउव्हिा कामापण्णत्ता, तं जहा— सिंगारा, कलुणा, बीभच्छा, रोद्दा । सिंगारा कामा देवाणं, कलुणा कामा मणुयाणं, बीभच्छा कामा तिरिक्खजोणियाणं, रोद्दा कामा रइयाणं ।
उत्ताण-गंभीर-पदं
५८४. चत्तारि उदगा पण्णत्ता, तं जहा— उत्ताणे णाममेगे उत्ताणोदए, उत्ताणे णाममेगे गंभीरोदए, गंभीरे णाममेगे उत्ताणोदए, गंभीरे णाममेगे गंभीरोदए ।
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हीनसत्त्वतया, भयवेदनीयस्य कर्मणः उदयेन, मत्या, तदर्थोपयोगेन ।
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अविमुक्ततया, लोभवेदनीयस्य कर्मणः उदयेन, मत्या, तदर्थोपयोगेन ।
काम-पदम्
।
चतुर्विधाः कामाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा शृङ्गाराः, करुणाः, बीभत्साः, रौद्राः शृङ्गाराः कामाः देवानां, करुणाः कामाः मनुजानां, बीभत्साः कामाः तिर्यग्योनिकानां, रौद्रा: कामाः नैरयिकाणाम् ।
उत्तान गम्भीर-पदम्
चत्वारि उदकानि प्रज्ञप्तानि तद्यथाउत्तानं नामैकं उत्तानोदकं, उत्तानं नामैकं गम्भीरोदकं, गम्भीरं नामैकं उत्तानोदकं, गम्भीरं नामैकं गम्भीरोदकम् ।
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काम-पद
५८३. काम भोग चार प्रकार के होते हैं-
१. शृंगार, २. करुण, ३. बीभत्स, ४. रौद्र । देवताओं का काम शृंगार रस प्रधान होता है, मनुष्यों का काम करुण रस प्रधान होता है, तिर्यंचों का काम बीभत्सरस प्रधान होता है, नैरयिकों का काम रौद्र रस प्रधान होता है।
उत्तान गम्भीर-पद
५८४. उदक चार प्रकार के होते हैं-
१. एक उदक प्रतल छिछला भी होता है और स्वच्छ होने के कारण उसका अन्तस्तल भी दीखता है, २. एक उदक प्रतल-छिछला होता है पर अस्वच्छ होने के कारण उसका अन्तस्तल नहीं दीखता, ३. एक उदक गंभीर होता है पर स्वच्छ होने के कारण उसका अन्तस्तल नहीं दीखता है, ४. एक उदक गंभीर होता है। पर अस्वच्छ होने के कारण उसका अन्तस्तल नहीं दिखता।
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