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________________ ठाणं (स्थान) ४६० ५७२. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं चतुविधा प्रव्रज्या प्रज्ञप्ता, तद्यथा— जहा — पुरओपडिबद्धा, मग्गओपडिबद्धा, पुरतः प्रतिबद्धा, 'मग्गतो' [ पृष्ठतः ] दुहतोपडिबद्धा, अप्प डिबद्धा । प्रतिबद्धा, द्वयप्रतिबद्धा, अप्रतिबद्धा । ५७३. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं चतुविधा प्रव्रज्या प्रज्ञप्ता, तद्यथा— जहा - ओवायपव्वज्जा, अक्खातपव्वज्जा, अवपातप्रव्रज्या, आख्यातप्रव्रज्या, संगारपव्वज्जा, विहगगइपव्वज्जा। संगरप्रव्रज्या, विहगगतिप्रव्रज्या । ५७४. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं चतुविधा प्रव्रज्या प्रज्ञप्ता, तद्यथा— जहा - तुयावइत्ता, पुयावइत्ता, बुआवइत्ता, तोदयित्वा, प्लावयित्वा, वाचयित्वा, परियावता । परिप्लुतयित्वा । ५७५. चउव्विहा पव्वज्जा पण्णत्ता, तं चतुविधा प्रव्रज्या प्रज्ञप्ता, तद्यथाजहा - खइया, भडखइया, सोहखइया, नट खादिता, भट खादिता, सियालखइया । सिंह खादिता, शृगाल खादिता । ५७६. चउब्विहा किसी पण्णत्ता, तं जहा - चतुविधा कृषिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा Jain Education International For Private & Personal Use Only स्थान ४ : सूत्र ५७२-५७६ ५७२. प्रव्रज्या चार प्रकार की होती है१. पुरतः प्रतिबद्धा - शिष्य, आहार आदि की कामना से ली जाने वाली, २. पृष्ठतः प्रतिबद्धा - प्रव्रजित हो जाने पर स्वजन-संबंध छिन्न नहीं हुए हों, ३. उभयप्रतिबद्धा — उक्त दोनों से प्रतिबद्ध ४. अप्रतिबद्धा - उक्त दोनों से अप्रतिबद्ध | ५७३. प्रव्रज्या चार प्रकार की होती है १. अवपात प्रव्रज्या - गुरु सेवा से प्राप्त की जाने वाली, ४. आख्यात प्रव्रज्या ---- दूसरों के कहने से ली जाने वाली, ३. संगरप्रव्रज्या परस्पर प्रतिबोध देने की प्रतिज्ञा पूर्वक ली जाने वाली, ४. विहगगति प्रव्रज्या - परिवार से वियुक्त होकर देशांतर में जाकर ली जाने वाली । ५७४. प्रव्रज्या चार प्रकार की होती है १. कष्ट देकर दी जाने वाली, २. दूसरे स्थान में ले जाकर दी जाने वाली, ३. बातचीत करके दी जाने वाली, ४. स्निग्ध सुमधुर भोजन करवा कर दी जाने वाली । ५७५. प्रव्रज्या चार प्रकार की होती है १. नटखादिता -- जिसमें नट की भाँति वैराग्य शून्य धर्मकथा कहकर जीविका चलाई जाए, २. भटखादिता — जिसमें भट की भाँति बल का प्रदर्शन कर जीविका चलाई जाए, ३. सिंहखादिता -- जिसमें सिंह की भाँति दूसरों को डराकर जीविका चलाई जाए, ४. शृगालखादिता - जिसमें शृगाल की भाँति दयापात्र होकर जीविका चलाई जाए। ५७६. कृषि चार प्रकार की होती है www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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