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________________ ठाणं (स्थान) ४५८ स्थान ४ : सूत्र ५६३-५६७ ५६३. चउन्विधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा.- चतुर्विधः संवासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५६३. संवास चार प्रकार का होता है असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि असुर: नामक: असुर्या साधू संवासं १. कुछ असुर असुरियों के साथ संवास संवासं गच्छति, असुरे गाममेगे गच्छति, असुरः नामकः राक्षस्या साधू करते हैं, २. कुछ असुर राक्षसियों के साथ रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति, संवासं गच्छति, राक्षसः नामक: असुर्या संवास करते हैं, ३. कुछ राक्षस असुरियों रक्खसे णाममेगे असुरीए सद्धि साधू संवासं गच्छति, राक्षस: नामैकः के साथ संवास करते हैं, ४. कुछ राक्षस संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे राक्षस्या साधू संवासं गच्छति । राक्षसियों के साथ संवास करते हैं। रक्खसीए सद्धि संवासं गच्छति। ५६४. चउविधे संवासे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः संवासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५६४. संवास चार प्रकार का होता है-- असुरे णाममेगे असुरीए सद्धि असुरः नामकः असुर्या साधू संवासं १. कुछ असुर असुरियों के साथ संवास संवासं गच्छति, असुरे गाममेगे गच्छति, असुर: नामकः मानुष्या साध करते हैं, २. कुछ असुर मानुषियों के साथ मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, संवासं गच्छति, मनुष्यः नामैक: असुर्या संवास करते हैं, ३. कुछ मनुष्य असुरियों मणुस्से णाममेगे असुरीए सद्धि साध संवासं गच्छति, मनुष्यः नामकः । के साथ संवास करते हैं, ४. कुछ मनुष्य संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मानुष्या साध संवासं गच्छति। मानुषियों के साथ संवास करते हैं। मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति। ५६५. चउब्विधे संवासे पग्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधः संवासः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५६५. संवास चार प्रकार का होता है-- रक्खसे णाममेगे रक्खसीए सद्धि राक्षसः नामकः राक्षस्या साधु संवासं १. कुछ राक्षस राक्षसियों के साथ संवास संवासं गच्छति, रक्खसे णाममेगे गच्छति, राक्षसः नामकः मानुष्या साधू करते हैं, २. कुछ राक्षस मानूषियों के साथ मणुस्सीए सद्धि संवासं गच्छति, संवासं गच्छति, मनुष्यःनामैक: राक्षस्या संवास करते हैं, ३. कुछ मनुष्य राक्षसियों मणुस्से णाममेगे रक्खसीए सद्धि साधू संवासं गच्छति, मनुष्यः नामैक: के साथ संवास करते हैं, ४. कुछ मनुष्य संवासं गच्छति, मणुस्से णाममेगे मानुष्या साध संवासं गच्छति । मानुषियों के साथ संवास करते हैं। मणुस्सीए द्धि संवासं गच्छति। अवद्धंस-पदं अपध्वंस-पदम् अपध्वंस-पद ५६६. चउन्विहे अवद्धंसे पण्णत्ते, तं चतुर्विधः अपध्वसः प्रज्ञप्तः, तद्यथा- ५६६. अपध्वंस–साधना का विनाश चार प्रकार जहा का है-१. आसुर-अपध्वंस, २. अभियोगआसुरे, आभिओगे, संमोहे, आसुरः, आभियोगः, सम्मोहः, अपध्वंस, ३. सम्मोह-अपध्वंस, देवकिब्बिसे। देवकिल्बिषः । ४. देवकिल्बिष-अपध्वंस । १२६ ५६७. चउहि ठाणेहिं जीवा आसुरत्ताए चतुभिः स्थान: जीवा आसुरतया कर्म ५६७. चार स्थानों से जीव आसुरत्व-कर्म का कम्म पगरेंति, तं जहा- प्रकुर्वन्ति, तद्यथा अर्जन करता हैकोवसीलताए, पाहुडसीलताए, कोपशीलतया, प्राभूतशीलतया, १. कोपशीलता से, २.प्राभृत शीलतासंसत्ततवोकम्मेणं, णिमित्ता- संसक्ततपःकर्मणा, निमित्ताजीवतया। कलहस्वभाव से, ३. संसक्त तपः कर्मजीवयाए। आहार, उपधि की प्राप्ति के लिए तप करने से,४.निमित्त जीविता-निमित्त आदि बताकर आहार आदि प्राप्त करने से । २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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