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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४ : सूत्र ५४४
संगहणी-गाहा १. सालदुममज्भयारे, जह सालेणाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, सुंदरसीसे मुणयन्वे॥
संग्रहणो-गाथा १. शालद्रुममध्यकारे, यथा शालो नाम भवति द्रुमराजः । इति सुन्दर: आचार्यः, सुन्दरः शिष्यः ज्ञातव्यः ।।
२. एरंडमझयारे, जह साले णाम होइ दुमराया। इय सुंदरआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयव्वे ॥
२. एरण्डमध्यकारे, यथा शालो नाम भवति द्रुमराजः।। एवं सुन्दरः आचार्यः, मंगलः (असुन्दर:) शिष्यः ज्ञातव्यः ।।
संग्रहणी-गाथा १. जिस प्रकार शाल नाम का वृक्ष शालवृक्षों से घिरा हुआ होता है उसी प्रकार शाल-आचार्य स्वयं सुन्दर होते है और शाल परिवार---सुन्दर शिष्य परिवार से परिवत होते है, २. जिस प्रकार शाल नाम का वृक्ष एरण्डवृक्षों से घिरा हुआ होता है उसी प्रकार शाल आचार्य स्वयं सुन्दर होते हैं और वे एरण्ड परिवार-असुन्दर शिष्यों से परिवृत होते हैं, ३. जिस प्रकार एरण्ड नाम का वृक्ष शाल-वृक्षों से घिरा हुआ होता है उसी प्रकार एरण्ड-आचार्य स्वयं असुन्दर होते है और वे शाल परिवार—सुन्दर शिष्यों से परिवृत होते हैं, ४. जिस प्रकार एरण्ड नाम का वृक्ष एरण्ड-वृक्षों से घिरा हुआ होता है उसी प्रकार एरण्ड-आचार्य स्वयं भी असुन्दर होते हैं और वे एरण्ड परिवार-असुन्दर शिष्यों से परिवत होते है।
३. सालदुममज्झयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया। इय मंगुलआयरिए, सुंदरसीसे मुणेयव्वे ॥
३. शालद्रुममध्यकारे, एरण्डो नाम भवति द्रुमराजः । एवं मंगुल: आचार्यः, सुन्दरः शिष्यः ज्ञातव्यः॥
४. एरंडमझयारे, एरंडे णाम होइ दुमराया। इय मंगुलआयरिए, मंगुलसीसे मुणेयध्वे ॥
४. एरण्डमध्यकारे, एरण्डो नाम भवति द्रुमराजः। एवं मंगुल: आचार्यः, मंगुलः शिष्यः ज्ञातव्यः॥
भिक्खाग-पदं भिक्षाक-पदम्
भिक्षाक-पद ५४४. चत्तारि मच्छा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः मत्स्याः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५४४. मत्स्य चार प्रकार के होते हैं
अणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अनुश्रोतश्चारी, प्रतिश्रोतश्चारी, १. अनुस्रोतचारी--प्रवाह के अनुकूल अंतचारी, मज्मचारी। अन्तचारी, मध्यचारी। चलने वाले, २. प्रतिस्रोतचारी-प्रवाह
के प्रतिकूल चलने वाले, ३. अन्तचारीकिनारों पर चलने वाले, ४. मध्यचारी
बीच में चलने वाले। एवामेव चत्तारि भिक्खागा पण्णत्ता, एवमेव चत्वारः भिक्षाकाः प्रज्ञप्ताः, इसी प्रकार भिक्षुक भी चार प्रकार के तं जहातद्यथा
होते हैंअणुसोयचारी, पडिसोयचारी, अनुश्रोतश्चारी, प्रतिश्रोतश्चारी, १. अनुश्रोतचारी, २. प्रतिश्रोतचारी, अंतचारी, मज्भचारी।
अन्तचारी, मध्यचारी। ३. अन्तचारी, ४. मध्यचारी।
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