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________________ स्थान ४ : सूत्र ५४०-५४१ ठाणं (स्थान) ४५० णो देसाधिवती, एगे देसाधिव- एकः देशाधिपतिरपि, सर्वाधिपतिरपि, तीवि, सन्वाधिवतीवि, एगे णो एक: नो देशाधिपतिः, नो सर्वाधिपतिः । देसाधिवती, णो सव्वाधिवती। २. कुछ राजा सब देशों के ही अधिपति होते हैं, एक देश के अधिपति नहीं होते, ३. कुछ राजा एक देश के भी अधिपति होते हैं और सब देशों के भी अधिपति होते हैं, ४. कुछ राजा न एक देश के अधिपति होते हैं और न सब देशों के ही अधिपति होते हैं। मेह-पदं मेघ-पदम् मेघ-पद ५४०. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः मेघाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५४०. मेघ चार प्रकार के होते हैं पुक्खलसंवट्टते पज्जुण्णे, जीमूते पुष्कलसंवतः, प्रद्युम्नः, जीमूतः, जिम्हः। १. पुष्कलसंवर्त, २. प्रद्युम्न, जिम्मे। ३. जीमूत, ४. जिम्ह । पुक्खलसंवट्टए णं महामेहे एगेणं पुष्कलसंवतः महामेघः एकेन वर्षेण पुष्कलसंवर्त महामेघ एक वर्षा से दस वासेणं दसवाससहस्साई भावेति। दशवर्षसहस्राणि भावयति । हजार वर्ष तक पृथ्वी को स्निग्ध कर देता है, पज्जुण्णे णं महामेहे एगेणं वासेणं प्रद्युम्नः महामेघ: एकेन वर्षेण दशवर्ष- प्रद्युम्न महामेघ एक वर्षा से एक हजार दसवाससयाई भावेति । शतानि भावयति । वर्ष तक पृथ्वी को स्निग्ध कर देता है, जीमूते णं महामेहे एगेणं वासेणं जीमूतः महामेघः एकेन वर्षेण दशवर्षाणि जीमूत महामेघ एक वर्षा से दस वर्ष तक दसवाससयाई भावेति। भावयति । पृथ्वी को स्निग्ध कर देता है, जिम्मे णं महामेहे बहूहि वासेहि जिम्हः महामेघः बहुभिर्वर्षेः एक वर्ष जिम्ह महामेघ अनेक बार बरस कर एक एगं वासं भावेति वा ण वा भावयति वा न वा भावयति । वर्ष तक पृथ्वी को स्निग्ध करता है और भावेति। नहीं भी करता। आयरिय-पदं आचार्य-पदम् आचार्य-पद ५४१. चत्तारि करंडगा पण्णत्ता, तं चत्वारः करण्डकाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५४१. करण्डक चार प्रकार के होते हैंजहा १. श्वपाक-करण्डक--चाण्डाल का सोवागकरंडए, वेसियाकरंडए, श्वपाककरण्डकः, वेश्याकरण्डकः, करण्डक, २. वेश्या-करण्डक, गाहावतिकरंडए, रायकरंडए। गृहपतिकरण्डकः, राजकरण्डक । ३. गृहपति-करण्डक, ४. राज-करण्डक । एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, एवमेव चत्वारः, आचार्याः प्रज्ञप्ताः, इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के तं जहातद्यथा होते हैंसोवागकरंडगसमाणे, वेसिया- श्वपाककरण्डकसमानः, वेश्याकरण्डक १. श्वपाक-करण्डक के समान, करंडगसमाणे, गाहावतिकरंडग- समानः, गृहपतिकरण्डकसमानः, २. वेश्या-करण्डक के समान, समाणे, रायकरंडगसमाणे। राजकरण्डकसमानः। ३. गृहपति-करण्डक के समान, ४. राज-करण्डक के समान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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