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________________ ठाणं (स्थान) ४४६ स्थान ४ : सूत्र ५२६-५३३ रुक्खविगुव्वणा-पदं रुक्षविकरण-पदम् रुक्षविकरण-पद ५२६. चउध्विहा रुक्खविगुब्वणा पण्णत्ता, चतुर्विधं रुक्षविकरणं प्रज्ञप्तम्, ५२६. वृक्ष की विक्रिया चार प्रकार की होती तं जहा—पवालत्ताए, पत्तताए, तद्यथा--- है-१. प्रवाल के रूप में २. पत्र के रूप पुप्फत्ताए, फलत्ताए। प्रवालतया, पत्रतया, पुष्पतया, फलतया। में ३. पुष्प के रूप में ४. फल के रूप में! वादि-समोसरण-पदं वादि-समवसरण-पदम् वादि-समवसरण-पद ५३०. चत्तारि वादिसमोसरणा पण्णत्ता, चत्वारि वादिसमवसरणानि प्रज्ञप्तानि, ५३०. चार वादि-समवसरण हैंतं जहा. तद्यथा १. क्रियावादी---आस्तिक २. अक्रियाकिरियावादी, अकिरियावादी, क्रियावादी, अक्रियावादी, वादी---नास्तिक ३. अज्ञानवादी ४. अण्णाणियावादी, वेणइयावादी। अज्ञानिकवादी, वैनयिकवादी। विनयवादी। ५३१. रइयाणं चत्तारि वादिसमो- नैरयिकाणां चत्वारिवादिसमवसरणानि ५३१. नैरयिकों के चार वादी-समवसरण होते का जहा प्रज्ञप्तानि, तद्यथा है—१. क्रियावादी २. अक्रियावादी किरियावादी, 'अकिरियावादी, क्रियावादी, अक्रियावादी,अज्ञानिकवादी, ३. अज्ञानवादी ४. विनयवादी। अण्णाणियावादी वेणइयावादी। वैनयिकवादी। ५३२. एवमसुरकुमाराणवि जाव थणिय- एवम्—असुरकुमाराणामपि यावत् ५३२. इसी प्रकार असुरकुमारों यावत् स्तनित कुमाराणं, एवं_विलिदियवज्ज स्तनितकुमाराणाम्, एवम्-विकलेन्द्रिय- कुमारों के चार-चार वादि-समवसरण होते हैं। इसी प्रकार विकलेन्द्रियों को जाव वेमाणियाणं । वर्ज यावत् वैमानिकानाम् । छोड़कर वैमानिक पर्यंत दंडकों के चारचार वादि-समवसरण होते हैं। मेह-पदं मेघ-पदम् मेघ-पद ५३३. चत्तारि मेहा पण्णत्ता, तं जहा- चत्वारः मेघाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ५३३. मेघ चार प्रकार के होते हैंगज्जित्ता णाममेगे, णो वासित्ता, गजिता नामकः, नो वर्षिताः, १. कुछ मेघ गरजने वाले होते हैं, बरसने वाले नहीं होते २. कुछ मेघ बरसने वाले वासित्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, वर्षिता नामैकः, नो गजिता, होते हैं, गरजने वाले नहीं होते ३. कुछ एगे गज्जित्तावि, वासित्तावि, एकः गजिताऽपि, वर्षिताऽपि, मेघ गरजने वाले भी होते हैं और बरसने एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता। एकः नो गजिता, नो वर्षिता। वाले भी होते हैं ४. कुछ मेध न गरजने वाले होते हैं और न बरसने वाले ही होते हैं । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया, एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा तद्यथागज्जित्ता णाममेगे, णो वासित्ता, जिता नामकः, नो वर्षिता, १. कुछ पुरुष गरजने वाले होते हैं, बरसने वासित्ता णाममेगे, णो गज्जित्ता, वर्षिता नामकः, नो गजिता, वाले नहीं होते, २. कुछ पुरुष बरसने वाले वाले होते हैं, गरजने वाले नहीं होते, एगे गज्जित्तावि, वासित्तावि, एक: गजिताऽपि, वर्षिताऽपि, ३. कुछ पुरुष गरजने वाले भी होते हैं एगे णो गज्जित्ता, णो वासित्ता। एकः नो गजिता, नो वर्षिता। और बरसने वाले भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न गरजने वाले होते हैं और न बरसने वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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