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ठाणं (स्थान)
वणकरे णाममेगे, णो वणसंरोही, वणसंरोही णाममेगे, जो वणकरे, एगे वणकरेवि, वणसंरोहीवि, एगे णो वणकरे, णो वणसंरोही ।
अंतबहि-पदं
५२१. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहाअंतोसल्ले णाममेगे, णो बाहिसल्ले, बाहिसल्ले णाममेगे, णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्लेवि, बाहिसल्ले वि, एगे णो अंतोसल्ले, णो बाहिसल्ले ।
५२२. चत्तारि वणा पण्णत्ता, तं जहाअंत णाममेगे, णो बाहिंदु, बाहिंदु णाममेगे, णो अंतोदुट्ट े, एगे तो वि, बाहदुट्ट े वि, एगे जो अंतोदु णो बाहदुट्ठे ।
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व्रणकरः नामैकः, नो व्रणसंरोही, व्रणसंरोही नामैकः, नो व्रणकरः, एक: व्रणकरोऽपि, व्रणसंरोह्यपि, एकः नो व्रणकरः, नो व्रणसंरोही ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि,
तद्यथा—
पण्णत्ता, तं जहाअंतोसल्ले णाममेगे, णो बाहिसल्ले, बाहिसल्ले णामगे, णो अंतोसल्ले, एगे अंतोसल्ले वि, बाहिसल्ले वि एगे जो अंतोसल्ले, णो बाहिसल्ले ।
अन्तःशल्यः नामैकः, नो बहिःशल्यः, बहिःशल्यः नामैकः, नो अन्तःशल्य, एक: अन्तःशल्योऽपि बहिःशल्योऽपि, एकः नो अन्तःशल्यः, नो बहिः शल्यः ।
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अन्तर्बहिः-पदम्
चत्वारः व्रणाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— अन्तःशल्यं नामैक, नो बहिः शल्यं, बहिःशल्यं नामैक, नो अन्तःशल्यं, एकं अन्तःशल्यमपि बहिः शल्यमपि, एकं नो अन्तःशल्यं, नो बहिःशल्यम् ।
चत्वारि व्रणानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा— अन्तर्दुष्टं नामैकः, नो बहिर्दुष्ट, बहिर्दुष्टं नामैकः, नो अन्तर्दुष्ट, एकं अन्तर्दुष्टमपि, बहिर्दुष्टमपि, एकं नो अन्तर्दुष्टं, नो बहिर्दुष्टम् ।
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स्थान ४ : सूत्र ५२१-५२२
१. कुछ पुरुष व्रण करते हैं, किन्तु उसका संरोह नहीं करते -- उसे भरते नहीं २. कुछ पुरुष व्रण का संरोह करते हैं, किन्तु व्रण नहीं करते ३. कुछ पुरुष व्रण भी करते हैं। और उसका संरोह भी करते हैं ४. कुछ पुरुष न व्रण करते हैं और न उसका संरोह करते हैं । अन्तर्बहिः-पद
५२१. व्रण चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ व्रण अन्तःशल्य (आन्तरिक घाव ) वाले होते हैं किन्तु बाह्यशल्य वाले नहीं होते २. कुछ व्रण बाह्यशल्य वाले होते. हैं, किन्तु अन्तःशल्य वाले नहीं होते ३. कुछ व्रण अन्तःशल्य वाले भी होते है Satara वाले भी होते हैं ४. कुछ व्रण न अन्तःशल्य वाले होते हैं। और न बाह्यशल्य वाले होते हैं।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं- १. कुछ पुरुष अन्तःशल्य वाले होते हैं, किन्तु बाह्यशल्य वाले नहीं होते २. कुछ पुरुष बाह्यशल्य वाले होते हैं, किन्तु अन्तः शल्य वाले नहीं होते ३. कुछ पुरुष अन्तः शल्य वाले भी होते हैं और बाह्य शल्य वाले भी होते हैं ४. कुछ पुरुष न अन्तः शल्य वाले होते हैं और न बाह्यशल्य वाज़े होते हैं ।
५२२. व्रण चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ व्रण अन्त:दुष्ट (अन्दर से विकृत ) होते हैं, किन्तु बाहर से दुष्ट नहीं होते २. कुछ व्रण बाहर से दुष्ट होते हैं, किन्तु अन्तः दुष्ट नहीं होते ३. कुछ व्रण अन्तःदुष्ट भी होते हैं और बाह्य दुष्ट भी होते हैं ४. कुछ व्रण न अन्तः दुष्ट होते हैं और न बाह्य दुष्ट होते हैं ।
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